अध्याय – 3 – वीज़ा की प्रतीक्षा: आत्मकथात्मक नोट्स
वर्ष सन् 1929 की बात है। बम्बई सरकार ने अछूतों की शिकायतों की जांच करने के लिए एक समिति नियुक्त की थी। मुझे समिति का… Read More »अध्याय – 3 – वीज़ा की प्रतीक्षा: आत्मकथात्मक नोट्स
वर्ष सन् 1929 की बात है। बम्बई सरकार ने अछूतों की शिकायतों की जांच करने के लिए एक समिति नियुक्त की थी। मुझे समिति का… Read More »अध्याय – 3 – वीज़ा की प्रतीक्षा: आत्मकथात्मक नोट्स
एक और घटना इससे अधिक प्रभावशाली हैं 6 मार्च, 1938 को भंगियों की एक सभा केसरवाड़ी (वूलम मिल के पीछे) दादर, बम्बई में भी इंदुलाल… Read More »अध्याय – 6 – वीज़ा की प्रतीक्षा: आत्मकथात्मक नोट्स
अगला मामला भी छुआछूत की बीमारी पर इसी प्रकार प्रकाश डालता है। यह काटियावाड के एक गाँव के एक अछूत स्कूल अध्यापक का मामला है… Read More »अध्याय – 5 – वीज़ा की प्रतीक्षा: आत्मकथात्मक नोट्स
आरम्भ में हमारा परिवार बम्बई प्रेसीडेन्सी के रत्नागिरी जिले के दपोली तालुका में रहता था। ईस्ट इंडिया कम्पनी का शासन आरम्भ होते ही मेरे पूर्वज… Read More »अध्याय – 1 – वीज़ा की प्रतीक्षा: आत्मकथात्मक नोट्स
निस्संदेह विदेशी जानते हैं कि भारत में छुंआछूत की बीमारी है। लेकिन निकट पड़ोसी न होने के कारण वे यह नहीं समझते कि वास्तव में… Read More »वीज़ा की प्रतीक्षा: आत्मकथात्मक नोट्स – प्रस्तावना
रानाडे का उद्देश्य अगर नई व्यवस्था बनाना नहीं था तो प्राचीन व्यवस्था का परिमार्जन करना अवश्य था। उन्होंने हिन्दू समाज के नैतिक स्तर में सुधार… Read More »अध्याय – 7 – रानाडे, गांधी और जिन्ना
तथापि उनके सबसे बड़े विरोधी राजनीतिक वर्ग के बुद्धिजीवी थे। इन राजनीतिक लोगों ने एक नई अभिधारणा विकसित की। उस अभिधारणा के अनुसार राजनीतिक सुधार… Read More »अध्याय – 6 – रानाडे, गांधी और जिन्ना
जैसा कि आप भलीभांति जानते हैं कि रानाडे के कुछ मित्र हैं, जो उनको एक महापुरुष के रूप में चित्रित करने में झिझक नहीं करते… Read More »अध्याय – 2 – रानाडे, गांधी और जिन्ना
मैं आपको यह बता दूं कि इस नियंत्रण से मैं बहुत प्रसन्न नहीं हूं। मुझे यह आशंका है कि हो सकता है कि मैं इस… Read More »अध्याय – 1 – रानाडे, गांधी और जिन्ना
भावी पीढ़ियां महान पुरुषों के अंतिम वचनों और अंतिम पश्चात्तापों में हमेशा रुचि लेती है। महान पुरुषों के अंतिम वचन इस लोक के बारे में… Read More »अध्याय – 10 – रानाडे, गांधी और जिन्ना