अनुक्रमणिका
II – प्रस्तावना – जाति का विनाश
अध्याय – 1 – बाबासाहेब डॉ. अंबेडकर का जात पात तोड़क मंडल का अध्यक्ष बनना
अध्याय – 2 – सामाजिक क्रांति राजनीतिक क्रांति से पहले होनी चाहिए
अध्याय – 3 – सामाजिक क्रांति आर्थिक क्रांति से पहले होनी चाहिए
अध्याय – 4 – जाति प्रथा – श्रम का विभाजन अथवा मानवों का विभाजन ?
अध्याय – 5 – क्या जाति प्रथा रक्त की शुद्धता को बचाती है ?
अध्याय – 6 – क्या हिंदू मिलकर एक समाज बनाते हैं ?
अध्याय – 7 – हिंदू जातियों में एक दूसरे के प्रति दुर्भावना क्यों हैं ?
अध्याय – 8 – आदिवासियों की सुध क्यों नहीं ली हिंदुओं ने ?
अध्याय – 9 – ब्राह्मणों ने निम्न जातियों को उनका सामाजिक स्तर सुधारने से क्यों रोका ?
अध्याय – 10 – हिंदू धर्म एक मिशनरी धर्म क्यों नहीं है ?
अध्याय – 11 – हिंदू धर्म की विभिन्न जातियों के बीच भाईचारा क्यों नहीं है ?
अध्याय – 12 – समाज से बहिष्कृत करने का मतलब है समाज सुधार को रोकना
अध्याय – 13 – जाति से वफादारी का मतलब है देश से गद्दारी
अध्याय – 14 – हम स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे पर आधारित समाज चाहते हैं
अध्याय – 15 – आर्य समाज – एक छलावा एक जाल
अध्याय – 16 – चातुर्वर्ण्यं 21वीं सदी में संभव है कि नहीं ?
अध्याय – 17 – वर्ण व्यवस्था ब्राह्मणों के द्वारा रचा गया षड्यंत्र है शूद्रों को गुलाम बनाकर रखने का
अध्याय – 18 – ब्राह्मण बनाम क्षत्रिय
अध्याय – 21 – जाति प्रथा को खत्म करना असंभव है ?
अध्याय – 22 – सुधार = तर्कवाद + नैतिकता
अध्याय – 23 – सिद्धांतों पर आधारित धर्म बनाम नियमों पर आधारित धर्म
अध्याय – 24 – हिंदू धर्म को सुधारने के 5 सुझाव
अध्याय – 25 – हिन्दुओं के लिए 4 सवाल अगर वो खुदके धर्म को बचाना चाहते है
अध्याय – 26 – हर हिन्दू को बाबासाहेब अंबेडकर के इस अंतिम सन्देश को जरुर जानना चाहिये