Skip to content
Home » अध्याय – 5 – वीज़ा की प्रतीक्षा: आत्मकथात्मक नोट्स

अध्याय – 5 – वीज़ा की प्रतीक्षा: आत्मकथात्मक नोट्स

अगला मामला भी छुआछूत की बीमारी पर इसी प्रकार प्रकाश डालता है। यह काटियावाड के एक गाँव के एक अछूत स्कूल अध्यापक का मामला है जिसका विवरण निम्नलिखित पत्र में दिया गया है जो श्री गाँधी द्वारा प्रकाशित पत्रिका फ्यंग इंडिया” के दिनांक 12 सितम्बर, 1929 के संस्करण में प्रकाशित हुआ था। इसमें यह बताया गया है कि उसे एक हिन्दू डॉक्टर को उसकी पत्नी को, जिसने एक बच्चे को जन्म दिया था, देखने के लिए राजी करने में क्या कठिनाइयाँ हुईं और चिकित्सा के अभाव में कैसे उसकी पत्नी और बच्चे की मृत्यु हो गई। पत्र में कहा गया हैः फ्इस माह की पाँच तारीख को मेरे एक बच्चा पैदा हुआ। सात तारीख को वह बीमार हो गया और उसे दस्त लग गए। उसकी शक्ति क्षीण हो गई और उसकी छाती लाल हो गई। उसके लिए साँस लेना कठिन हो गया और उसकी पसलियों में जोर से दर्द हो रहा था। मैं एक डॉक्टर को बुलाने गया लेकिन उसने कहा कि वह एक हरिजन के घर नहीं जाएगा और न ही वह बच्चे को देखने के लिए तैयार था। तब मैं नगरसेठ और गरसिया दरबार के पास गया और उनसे सहायता करने के लिए कहा। नगरसेठ ने डॉक्टर को जमानत दी कि उसकी फीस के दो रुपए मैंने नहीं दिए तो वह देगा। तब डॉक्टर आया लेकिन इस शर्त पर कि वह हरिजन बस्ती के बाहर उसकी जाँच करेगा। मैं अपनी पत्नी और उसके नवजात बच्चे को बस्ती से बाहर ले गया। डॉक्टर ने अपना थर्मामीटर एक मुसलमान को दिया उसने मुझे दिया, मैंने उसे अपनी पत्नी को दिया और लगाने के बाद उसे उसी तरीके से लौटाया गया। उस समय करीब शाम के आठ बजे का समय था और डॉक्टर ने एक लैम्प की रोशनी से थर्मामीटर देखकर कहा कि मरीज को निमोनिया हो रहा है। उसके बाद डॉक्टर चला गया और दवा भेज दी। मैं बाजार से कुछ अलसी के बीज लाया और उनका मरीज पर प्रयोग किया बाद में डॉक्टर ने उसे देखने से मना कर दिया जबकि मैंने फीस के दो रुपए दे दिए थे। बीमारी खतरनाक है और भगवान ही हमारी मदद करेगा।

मेरे जीवन का दीपक बुझ गया है। आज दोपहर करीब 2 बजे उसकी मृत्यु हो गई।”

स्कूल के अछूत अध्यापक का नाम नहीं दिया गया। डॉक्टर का नाम भी नहीं दिया गया है। ऐसा अछूत अध्यापक के अनुरोध पर किया गया है जिसे प्रतिशोध का डर था। यह तथ्य अविवाद्य हैं।

किसी स्पष्टीकरण की आवश्यकता नहीं है कि डॉक्टर ने पढ़े-लिखे होने के बावजूद थर्मामीटर लगाने और गम्भीर दशा में एक बीमार स्त्री का उपचार करने से मना कर दिया। डॉक्टर के उसका उपचार करने से मना करने के कारण उसकी मृत्यु हो गई। डॉक्टर के पेशे पर लागू आचरण-संहिता को एक तरफ रखने पर भी उसकी आत्मा ने उसे नहीं कचोटा। हिन्दू एक अछूत को छूने के बजाए अमानुषिक बनना अधिक पसन्द करेगा।