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अध्याय – 4 – वीज़ा की प्रतीक्षा: आत्मकथात्मक नोट्स

वर्ष 1934 में पददलित वर्गों के आंदोलन में मेरे कुछ सहयोगियों ने सैर-सपाटे पर जाने की इच्छा व्यक्त की। वे चाहते थे कि मैं भी साथ चलूँ। मैं सहमत हो गया। यह फैसला हुआ कि हमारा कार्यक्रम जो भी बने उसमें वैरूल की बौद्ध-गुफाओं की यात्र जरूर शामिल हो। यह निश्चय हुआ कि मैं नासिक जाऊँ और अन्य सभी लोग मुझे वहाँ मिलें। वैरूल जाने के लिए हमें औरंगाबाद जाना था। औरंगाबाद, मुसलमान रियासत हैदराबाद में है और यह निजाम की रियासत में सम्मिलित है। औरंगाबाद जाने के लिए हमें पहले एक और कस्बे दौलताबाद से गुजरना था जो हैदराबाद रियासत में है। दौलताबाद ऐतिहासिक स्थान है और कभी प्रसिद्ध हिन्दू राजा रामदेव राय की राजधानी था। दौलताबाद का किला प्राचीनकालीन ऐतिहासिक स्मारक है और कोई भी यात्री जो उधर जाता है उसे यह जगह जरूर देखनी चाहिए। हमने भी अपने कार्यक्रम में दौलताबाद की यात्र शामिल कर ली थी।

हमने कुछ बसें और पर्यटक कारें किराए पर लीं। हम लगभग 30 व्यक्ति थे। हमने नासिक से यओला की यात्र आरम्भ की। चूँकि यओला औरंगाबाद के रास्ते में है हमने अपने भ्रमण कार्यक्रम की घोषणा जानबूझ कर नहीं की थी। हम गुप्त रूप से यात्र करना चाहते थे ताकि अछूत पर्यटकों को देश के दूरस्थ भागों में जिन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है हमें उन कठिनाइयों का सामना न करना पड़े। हमने उन स्थानों पर अपने लोगों को सूचना दे दी थी जहाँ हमें रुकना था। तदनुसार, यद्यपि हम निजाम रियासत के बहुत से गाँवों से गुजरे, हमारा कोई आदमी हमसे मिलने नहीं आया। लेकिन दौलताबाद की बात दूसरी थी। हमने वहाँ अपने लोगों को आने की सूचना दे दी थी, वे लोग हमारी प्रतीक्षा कर रहे थे और शहर के प्रवेश मार्ग पर एकत्र हो गए थे। उन्होंने हमसे कहा कि हम पहले रुक कर चाय-नाश्ता लें और उसके बाद किला देखने जाएं। हम उनके प्रस्ताव से सहमत नहीं हुए। हमें चाय की तीव्र इच्छा हो रही थी लेकिन संध्या होने से पूर्व हम काफी समय चाहते थे ताकि किला देख सकें। अतः हम किला देखने के लिए चले गए और अपने लोगों से कहा कि हम लौटने पर चाय लेंगे। हमने अपने ड्राइवर से आगे चलने को कहा और कुछ ही क्षणों में हम किले के द्वार पर पहुँच गए।

रमजान का महीना था, मुसलमान इस माह रोजा रखते हैं। किले के फाटक के बिल्कुल पास एक छोटा-सा तालाब है जो लबालब भरा रहता है। उसके चारों ओर चौड़े पत्थर का खड़ंजा है। यात्र के दौरान हमारे चेहरे, शरीर और कपड़े धूल में सन गए थे और हम सभी नहाना चाहते थे। बिना सोचे समझे कुछ लोगों ने तालाब से पानी लेकर खडंजों पर मुंह और हाथ-पैर धो लिए। इसके पश्चात् हम किले के द्वार पर गए। किले के अंदर सशस्त्र सिपाही थे उन्होंने बड़ा दरवाजा खोला और हमें अंदर कर लिया। हमने संतरी से यह पूछना आरम्भ किया कि किले के अंदर जाने के लिए इजाजत लेने का क्या तरीका है। उसी समय एक सफेद दाढ़ी वाला मुसलमान पीछे से चिल्लाता हुआ आया। “ढ़ेढो! (अर्थात् अछूतों) ने तालाब अपिवत्र कर दिया है। तुरंत ही किले के आसपास के सभी जवान और बूढ़े मुसलमान वहाँ आ गए और सभी ने हमें बुरा-भला कहना आरम्भ कर दिया। ढेढ़ों को अहंकार हो गया। ढेढ अपना धर्म भूल गए हैं (जैसे निम्न और स्तरहीन बने रहने)। ढेढ़ों को एक पाठ पढ़ाया जाए।” वे बड़े उग्र हो गए। हमने उनसे कहा कि हम बाहर से आए हैं और स्थानीय रीति-रिवाज नहीं जानते हैं। वे स्थानीय अछतों पर भी बिगड़ने लगे जो तब तक फाटक तक आ गए थे। “तुमने इन बाहर के लोगों को क्यों नहीं बताया कि अछूत इस तालाब का इस्तेमाल नहीं कर सकते!” वे यह प्रश्न उन बेचारों से पूछते रहे जबकि जब हम तालाब में घुसे वे वहां नहीं थे। वास्तव में यह हमारी भूल थी कि हम बिना पूछे उसमें घुस गए। वे कहने लगे कि वह उनकी गलती नहीं है। लेकिन मुसलमान मेरी बात सुनने के लिए तैयार ही नहीं थे। वे हमको और उनको भली-बुरी सुनाते रहे। उनकी बातें इतनी गन्दी थीं कि हमें उन पर क्रोध भी आ गया। हमें अपने ऊपर काबू रखना पड़ा नहीं तो बड़ी आसानी से उपद्रव हो सकता था और हत्याएं भी हो सकती थीं। हम नहीं चाहते थे कि कोई फौजदारी मामला बने और हमें अपना दौरा एकदम समाप्त करना पड़े।

भीड़ में से एक नवजवान मुसलमान यह कह रहा था कि हरेक को अपने धर्म के अनुसार चलना चाहिए, अर्थात् अछूतों को सार्वजनिक तालाब से पानी नहीं लेना चाहिए। मैं कुछ अधीर हो गया और उससे कुछ गुस्से में पूछा, “क्या तुम्हारा धर्म यही सिखाता है? यदि कोई अछूत मुसलमान बन जाए तो क्या तुम उसे इस तालाब से पानी लेने से रोकोगे? इन सीधे प्रश्नों से मुसलमानों पर कुछ प्रभाव पड़ा। उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया और चुपचाप खड़े रहे। सन्तरी की ओर घूरकर मैंने दोबारा गुस्से में कहा, “क्या हम किले के अन्दर जा सकते हैं या नहीं? हमें बताएं, यदि हम नहीं जा सकते तो हम यहाँ नहीं रुकना चाहते।” सन्तरी ने मेरा नाम पूछा। मैंने एक कागज पर लिख दिया। वह उसे अन्दर अधीक्षक के पास ले गया और बाहर आया। हमें बताया गया कि हम किले के अन्दर जा सकते हैं। किन्तु हम कहीं भी किले के अन्दर पानी को हाथ नहीं लगा सकते। एक सशस्त्र सिपाही को हमारे साथ यह सुनिश्चित करने के लिए जाने के आदेश दिए गए कि हम आदेश का उल्लंघन न करें।

मैंने यह उदाहरण यह दिखाने के लिए दिया था कि एक व्यक्ति जो हिन्दू के लिए अछूत है वह एक पारसी के लिए भी अछूत है। इस घटना से यह स्पष्ट हो जाता है कि एक व्यक्ति जो हिन्दुओं के लिए अछूत है वह एक मुसलमान के लिए भी अछूत है।