ब्राह्मणों की कलिवर्ज्य नामक हठधर्मी बहुत कम लोगों को ज्ञात है। कलियुग को अन्य ब्राह्मणवादी हठधर्म से इसको भ्रमित नहीं करना चाहिए।
कलिवर्ज्य की हठधर्मी में कुछ प्रथाओं और व्यवहारों को गिनाया गया है जो अन्य युगों में व्यावहारिक थीं लेकिन कलियुग में उनके अनुपालन पर पाबंदी है। इन अनुदेशों के प्रसंग विभिन्न पुराणों में यत्र-तत्र उपलब्ध हैं, परन्तु आदित्य पुराण में उन्हें संहिताबद्ध1 करके संग्रहीत कर दिया गया है। कलिवर्ज्य प्रथाएं निम्नांकित हैं:
- विधवा से पुत्र उत्पन्न करने हेतु पति के भाई की नियुक्ति।
- किसी (विवाहित) स्त्री का पुनर्विवाह (उसका जिसका विवाह पक्का नहीं हुआ) (अथवा उसका जिसका विवाह पक्का हो गया था) दूसरे पति के साथ प्रथम पति की मृत्यु के उपरांत।
- तीनों द्विज वर्णों के बीच अन्य वर्णों की कन्याओं से विवाह।
- आततायी ब्राह्मण का सीधे युद्ध में भी वध।
- किसी द्विज से व्यवहार (उसके साथ खान-पान जैसा व्यवहार) जो समुद्र यात्र पर जाता है, चाहे उसने प्रायश्चित भी क्यों न कर लिया हो?
- सात्र का उपनयन कराना।
- जल हेतु कमण्डल लेकर चलना।
- लम्बी यात्र पर जाना।
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- मैंने उन्हें महामहोपाध्याय काणे के पेपर से लिया है।
यह नौ पृष्ठों का टंकित आलेख है। लेखक ने अनेक संशोधन किए हैं। कलिवर्ज्य पर सभी टिप्पणियां इस भाग के परिशिष्ट में हैं। – संपादक
- गोमेध में गाय की बलि।
- श्रौतमणि यज्ञ तक में मद्यपान।
- और 12 अग्निहोत्र के पश्चात् बचे हुए प्रसाद को ग्रहण करने हेतु उसमें प्रयुक्त कलछी को चाटना और बाद में अग्निहोत्र में उस कलछी का प्रयोग करना।
- शास्त्रनुसार आश्रम जीवन यापन में प्रवेश।
- (जन्म और मृत्यु होने पर) व्यवहार और वैदिक ज्ञान के आधार पर अशुचिता की अवधि घटाना।
- प्रायश्चित स्वरूप मौत का विधान ब्राह्मणों के लिए।
- नैतिक पाप (स्वर्ण) चोरी को छोड़कर और पापियों (महापातकों) के साथ संपर्क होने पर (गुप्त) प्रायश्चित।
- वर, अतिथि और पितरों को मंत्रों के साथ जानवरों के मांस की भेंट।
- औरस तथा दत्तक पुत्र के अतिरिक्त अन्य को पुत्रों के रूप में स्वीकार करना।
- उन व्यक्तियों के साथ प्रायश्चित के उपरांत भी संपर्क, जिन्होंने उच्च जाति की महिला के साथ संभोग किया है।
- यदि किसी वृद्ध अथवा सम्मानित व्यक्ति की पत्नी ने परपुरुष से संभोग किया है और उसके लिए वह प्रताड़ित की गई है, उसका परित्याग।
- किसी एक व्यक्ति के लिए दूसरे का वध।
- झूठन छोड़ना।
- जीवन के लिए (पैसा लेकर) किसी देवता विशेष की मूर्ति की पूजा का संकल्प।
- मृत्यु के उपरांत अग्निक्रिया के अधीन फूल चुनने के पश्चात् उन व्यक्तियों का स्पर्श।
- ब्राह्मण द्वारा पशु की वास्तविक बलि।
- ब्राह्मण द्वारा सोम पादप का विक्रय।
- छह बार का भोजन अथवा छ समय तक भूखा रहने के उपरांत भी ब्राह्मण का शूद्र से भी भोजन ग्रहण करना।
- ब्राह्मण गृहस्थ का अपने शूद्र वर्ण के दास के हाथ से बना भोजन ग्रहण करना, गोशाला में और उन व्यक्तियों के हाथ का भोजन करना जो बटाई पर उसकी खेती करते हैं।
- बहुत लम्बी तीर्थ यात्र पर जाना।
- गुरु पत्नी के साथ वैसा व्यवहार जैसा स्मृतियों में गुरु के लिए निर्धारित है।
- ब्राह्मण द्वारा विपरीत परिस्थितियों में गलत कार्यों द्वारा जीवनयापन के लिए कल के लिए भोजन की परवाह न करना।
- जातकर्म होम के समय ब्राह्मण द्वारा अरनी (अग्नि उत्पन्न करने के लिए दो लकड़ियों के खण्ड) स्वीकार करना जिसके अनुसार शिशु के जातकर्म से उसके पाणिग्रहण तक के संस्कार कराने का कार्यक्रम हो।
- ब्राह्मण द्वारा सतत यात्र।
- बांस निर्मित फूंकनी के बिना आग में मुंह से फूंक मारना।
- शास्त्रों में वर्णित प्रायश्चित के पश्चात् भी किसी ऐसी स्त्री को जाति में सम्मिलित होने की स्वीकृति देना जो बलात्कार से कलंकित हो चुकी हो।
- संन्यासी द्वारा सभी वर्णों (शूद्रों सहित) से भिक्षा ग्रहण करना।
- जमीन से निकाने जाने वाले जल का पान करने हेतु दस दिन तक प्रतीक्षा।
- अध्यापक को दीक्षांत पर (मांगने पर) शास्त्रनुसार दक्षिणा।
- ब्राह्मण और अन्यों के लिए शूद्रों से भोजन बनवाना।
- वृद्धों द्वारा चट्टान से अथवा आग में कूदकर आत्महत्या।
- झूठे पानी का सम्मानित व्यक्तियों द्वारा आचमन, चाहे वह गाय का ही झूठा क्यों न हो?
- पिता और पुत्र के मध्य झगड़े में साक्षी को दंडित करना।
- संन्यासी जहां रात हो जाए, वहीं शयन करे।
इस कलिवर्ज्य संहिता के विषय में यह आश्चर्य की बात है कि इसके महत्व को पूर्ण समझा नहीं गया। इसे उन वर्जित कार्यों की सूचीमात्र समझा गया जो कलियुग में निषिद्ध हैं। परन्तु वर्जित कार्यों की सूची के पीछे और कुछ भी है। इसमें संदेह नहीं है कि कलिवर्ज्य संहिता में अनेक कार्यों के लिए वर्णन है। परन्तु प्रश्न यह है कि क्या इन कार्यों को अनैतिक माना गया है, निंदित पापकर्म अथवा समाज में हानिकर? इसका उत्तर है नहीं। प्रश्न यह है कि यदि वर्जित है तो निंदित क्यों नहीं है? यही कलिवर्ज्य संहिता की पहेली है। बिना निंदित बताए प्राचीनकाल के इन व्यवहारों को वर्जित घोषित करने की प्रणाली प्राचीन प्रणाली के विपरीत है। एक उदाहरण लेते हैं। आपस्तम्ब धर्म सूत्र में सम्पूर्ण सम्पत्ति ज्येष्ठ पुत्र को ही दिया जाना वर्जित है। परन्तु वह इसकी निंदा करता है। ब्राह्मणों ने यह प्रणाली क्यों अपनाई कि वर्जित है किन्तु निंदित नहीं। इस परित्याग के पीछे कोई विशेष कारण होना चाहिए। वह कारण क्या है?