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तीसरी पहेली – वेदों की उत्पत्ति पर अन्य शास्त्रें के साक्ष्य

वेदों की उत्पत्ति की खोज वेदों के साथ ही उत्पन्न हो गई थी। ऋग्वेद में वेदों

की उत्पत्ति का प्रसंग है। वह प्रसिद्ध पुरुष सूक्त में उपलब्ध है। उसके अनुसार एक

पौराणिक पुरुष के यज्ञ से वेद उत्पन्न हुए जो ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद कहलाए।

सामदेव और यजुर्वेद वेदों की उत्पत्ति के बारे में कुछ भी नहीं कहते। जिस अन्य

वेद में यह संदर्भ है वह है अथर्ववेद। उसने वेदों की उत्पत्ति की अनेक व्याख्याएं

की हैं। एक व्याख्या1

इस प्रकार हैः

‘‘काल से ऋव्फ़ ऋचाएँ प्रस्फुटित हुई और यजुर काल से उपजा।’’

अथर्ववेद में इस विषय पर दो अन्य प्रसंग हैं। इनमें से प्रथम बहुत विवेकपूर्ण

नहीं है, जिसे उसी की भाषा में इस प्रकार2

कहा जा सकता है:

घोषित करो की स्कंभ कौन है (संवर्धक सिद्धांत) जो आदि ऋषियों,

ऋव्फ़, साम, यजुर, पृथ्वी और ऋषियों का पालक है—

‘‘बताओ वह स्कंभ कौन है जिससे ऋव्फ़, ऋचाएँ, प्रस्फुटित हुईं जहाँ से

वे यजुर में संक्रमित हुईं जिससे साम मंत्र उत्पन्न हुए। अथर्वन और अंगिरस के

मंत्र उसकी वाणी है।’’

स्पष्ट यह है कि यह उनके लिए चुनौती है जो कहते हैं कि ऋव्फ़, साम और

यजुर्वेद स्कंभ से उत्पन्न हुए।

अथर्ववेद की दूसरी व्याख्या है कि ऋव्फ़, साम और यजुर्वेद इन्द्र3

प्रदत्त हैं।

1- अथर्ववेद 19, 54-3 म्यूर द्वारा संस्कृत टैक्स्ट में उद्धृत खंड 1, 3, पृ- 4

2- अथर्ववेद 10, 7-14 म्यूर द्वारा संस्कृत टैक्स्ट में उद्धृत खंड 1, 3, पृ- 3

3- म्यूर, संस्कृत टैक्स्ट खंड 3, पृ- 4

14 बाबासाहेब डॉ- अम्बेडकर संपूर्ण वाघ्मय

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वेदों को अपनी उत्पत्ति के बारे में स्वयं ही बताना है। वेदों के पश्चात् ब्राह्मण

ग्रन्थ आते हैं। हमको यह पूछताछ करनी ही चाहिए कि वे इस संबंध में क्या कहते

हैं। केवल शतपथ ब्राह्मण, तैत्तरीय ब्राह्मण, ऐतरेय ब्राह्मण, कौषीतकि ब्राह्मण में वेदों

की उत्पत्ति की व्याख्या की गई है।

शतपथ ब्राह्मण में कई व्याख्याएँ हैं। एक प्रजापति1

को वेदों का सृष्टा मानती

है। उसके अनुसारः

‘‘आरंभ में एकमेव प्रजापति ही ब्रह्माण्ड थे, उनकी इच्छा हुई ‘‘मेरी अभिवृद्धि

हो, मेरा विस्तार हो।’’ उन्होंने उपासना की, तप किया।’’

‘‘जब वे उपासनालीन थे, ध्यानस्थ थे तो तीन तत्वों की उत्पत्ति हुई, पृथ्वी, वायु

और आकाश। उन्होंने इसमें ऊष्मा का संचार किया। उस ऊष्मा से तीन तेज उत्पन्न

हुए, अग्नि जो शुद्ध करती है, पवन अथवा वायु और सूर्य। इन तीनों तेजों में

ऊष्मा का संचार किया। उनके ताप से तीन वेद उत्पन्न हुए। अग्नि से ऋग्वेद,

वायु से यजुर्वेद, सूर्य से सामवेद। उन्होंने उन तीन वेदों में ऊष्मा का संचार किया,

उनमें से तीन तेजोमय तत्वों की उत्पत्ति हुई। ‘‘भू’’ ऋग्वेद से, ‘‘भुवः’’ यजुर्वेद

से और ‘‘स्व’’ सामवेद से निकले। अब ऋग्वेद अध्वर्यु का अधिष्ठाता बना, और

सामवेद उद्गत्रि का कर्ता बना और तीन विधाओं से ब्राह्मण का कार्य, इन तत्वों

के माध्यम से निर्धारित हुआ (जैसे कि तीनों वेद आपस में एक हैं)’’।

शतपथ ब्राह्मण प्रजापति से वेदों की उत्पत्ति2

की भिन्न व्याख्या करता है। वह कहता

है कि प्रजापति ने जल से वेदों की रचना की। शतपथ ब्राह्मण कहता है किः

‘‘पुरुष प्रजापति की इच्छा हुई, ‘‘मेरी अभिवृद्धि हो, मेरा विस्तार हो’’। वे उपासना में

बैठ गए, उन्होंने घोर तप किया। इस तप से उन्होंने सर्वप्रथम पवित्र त्रिवेद विज्ञान प्रज्ञा

की रचना की। यह उनका आधार बना। उन्होंने कहा प्रज्ञा ब्रह्माण्ड का मूल है। वेदों

के अध्ययन के पश्चात् पुरुष को स्थायी आधार मिलता है क्योंकि प्रज्ञा उसकामूल है।

इस आधार पर प्रजापति ने घोर तप किया। उन्होंने वाच (वाणी) से जल की रचना

की। उन्होंने वाच की भी रचना की थी। उसके विस्तरण से जल ‘‘अप्प’’ कहलाया।

उसकी सर्वत्र व्यापकता से वह ‘‘वार’’ बना। उन्होंने चाहा ‘‘मेरा जल से विस्तार हो’’

इस त्रिव ेद विज्ञान स े व े जल म े ं प ्रविष्ट ह ुए। तब एक अण्डज उभरा। उन्होंने

उसे सरकाया और कहा- ‘‘भव भव पुनर्भव’’। तब प्रज्ञा का जन्म हुआ त्रिवेद

1- म्यूर, संस्कृत टैक्स्ट, खंड 3, पृ- 5

2- वही पृ- 8

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विज्ञान। फिर पुरुष ने कहा प्रज्ञा ब्रह्मांड की प्रथम सृष्टि है। पुरुष के समक्ष

सर्वप्रथम प्रज्ञा की रचना हुई, इसलिए यह उसका मुख बनी। इस प्रकार वे आगे

कहते हैं, ‘‘वह अग्नि के समान हैं क्योंकि प्रज्ञा अग्नि का मुख है।’’

शतपथ ब्राह्मण में तीसरी व्याख्या इस1

प्रकार दी गई है-

‘‘मस्तिष्क सागर है। मानस सागर से वाच द्वारा भगवान ने कुदाली से त्रिवेद विज्ञान

को खोद कर बाहर निकाला। तत्पश्चात् इस मंत्र का उच्चारण किया-प्रज्ञावान

देवता जाने।’’ उन्होंने उस सामग्री को कहाँ रखा जिसे ईश्वर ने तेजधार कुदाली

से खोदकर बाहर निकाला था। मस्तिष्क समुद्र है, वाच तीव्रधार कुदाली है।

त्रिवेद विज्ञान समिधा है। इस संदर्भ में इस मंत्र को उच्चारा। वह मस्तिष्क में

समा गया।’’

ब्राह्मण की तीन व्याख्याएँ हैं। वह कहता है कि वेदों के कर्ता प्रजापति हैं। वह

यह भी कहता है कि प्रजापति ने राजा सोम को बनाया और तत्पश्चात् तीन वेदों की

रचना2

की गई। इस ब्राह्मण की दूसरी व्याख्या3

का प्रजापति से कोई तात्पर्य नहीं।

इसके अनुसारः

‘‘वाच (वाणी) अविनाशी है, यह पूज्यों में प्रथम प्रसूत है, वेदों की जननी और

अनश्वरता का केन्द्र बिंदु है, हममें आनंदोपार्जन कर वह यज्ञ में प्रवेश करती है।

मेधावी ऋषि, मंत्रें के सृष्टा, जिसका अनुग्रह, तप और कठोर उपासना से प्राप्त

करते हैं, ऐसी रक्षा की देवी सरस्वती मेरा आह्वान सुनने को उद्धत हो।’’

इस सबके ऊपर ब्राह्मण तीसरी व्याख्या देता है। वह कहता है कि वेद प्रजापति4

की दाढ़ी से उत्पन्न हुए।

प्प्प्

उपनिषदों ने भी वेदों की उत्पत्ति की व्याख्या की है।

छान्दोग्य उपनिषद की व्याख्या शतपथ ब्राह्मण के समान5

है। अर्थात् ऋग्वेद अग्नि

से उत्पन्न हुआ। यजुर्वेद वायु से और सामदेव सूर्य से।

बृहदारण्यक उपनिषद ने दो व्याख्याएँ दी हैं। एक स्थान पर उसमें कहा गया है6

1- म्यूर, संस्कृत टैक्स्ट, खंड 1, पृ- 9-10

2- वही पृ- 8

3- वही पृ- 10

4- वही पृ- 10

5- वही पृ- 5

6- वही पृ- 8

तीसरी पहेली

आर्द्र काठ से अग्नि उपजी, उससे भिन्न-भिन्न धुएँ उठे, इसकी श्वांस प्रक्रिया

से महान ऋग्वेद बना, यजुर्वेद बना, सामवेद बना, अथर्ववेद, इतिहास, पुराण, विज्ञान,

उपनिषद, श्लोक, सूत्र विभिन्न प्रकार के भाष्य बने। यह सब उसका श्वास है।’’

अन्य स्थान पर वह कहता है1

‘‘प्रजापति द्वारा वाच की रचना की गई, और उसके और आत्मा के माध्यम से

वेदों सहित समस्त तत्वों का सृजन हुआ है।’’

‘‘उसी वाच और आत्मा के आध्यम से उसने सबका सृजन किया, चाहे वह

ऋग्वेद हो, यजुस, साम, छंद, यज्ञ या विभिन्न जीव-जंतु हों।’’

तीन वेद, तीन तत्व हैं-वाच, मानस और श्वांस। वाच ऋग्वेद है। मानस यजुर्वेद

है और श्वांस सामवेद।

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अब हम स्मृतियों पर आते हैं। मनुस्मृति में वेदों की उत्पत्ति के संबंध में दो सिद्धांत

हैं। एक स्थान2

पर वह कहती है कि वेदों की रचना ब्रह्मा ने की है:

‘‘उसी ब्रह्म ने आरम्भ में वेद से शद्व सृजन कर पृथक-पृथक नाम, कर्म

तथा व्यवस्था बनाईं। उसी भगवान ने इन्द्रादि देव कर्मस्वभाव, प्राणी, अप्राणी,

साध्यगण और सनातन यज्ञ की सृष्टि की। इस ब्रह्मा ने यज्ञों की सिद्धी के

लिए अग्नि, वायु और सूर्य से नित्य ऋग्वेद, यजुर्वेद और सामवेद को क्रमशः

प्रकट किया।’’

एक अन्य स्थान3

पर ऐसा आभास मिलता है कि प्रजापति वेदों का जनक है

जैसा कि निम्नांकित से प्रकट हैः

‘‘ब्रह्मा ने ऋव्फ़ आदि तीनों वेदों से क्रमशः ‘‘अ, उ, म’’ इन तीन अक्षरों तथा

‘‘भू, भुवः, स्वः’’ इन तीनों व्याहृतियों को निकाला है। परम श्रेष्ठ ब्रह्मा ने ऋव्फ़

आदि तीनों वेदों से ‘‘तत’’ शब्द से प्रारंभ होने वाला इस सावित्री (अथवा गायत्री)

का एक तिहाई पद निकाला है। ओमकार-पूर्विका ये तीनों भूः भुवः स्वः अनश्वर

तत्व नाशरहित है और त्रिपदा गायत्री वेदों का मुख है।’’

1- म्यूर, संस्कृत टैक्स्ट, खंड 1, पृ- 9

2- वही पृ- 6

3- वही पृ- 7

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वेदों के संबंध में पुराणों का क्या कहना है, यह भी एक दिलचस्प बात है।

विष्णु पुराण1

में कहा गया हैः

‘‘फिर अपने पूर्व मुख से ब्रह्मा ने गायत्री, ऋव्फ़, त्रिवृत, सोमरथंतर और अग्निष्टोम

यज्ञों को रचा। दक्षिण मुख से यजु, त्रैष्टुप्छन्द, पंचदशस्तोम, वृहत्साम तथा

उक्थ्य की रचना की। पश्चिम मुख से साम, जगतिछंद, सप्तदशस्तोम, वैरूप और

अतिरात्र को उत्पन्न किया तथा उत्तर मुख से उन्होंने एकविंशतिस्तोम, अथर्ववेद,

आप्तोर्यामण, अनुष्टपछंद और वैराज छंद की सृष्टि की।’’

भागवत पुराण2

में कहा गया हैः

‘‘एक बार जब चतुर्मुख ब्रह्मा के मुख से वेद प्रस्फुटित हुए, वे यह जानने के लिए

ध्यान लगा रहे थे कि मैं पहले की भांति सृष्टि का कैसे विस्तार करूं? उन्होंने अपने

पूर्व मुख और अन्य मुखों से ऋक, यजुश, साम और अथर्ववेद की रचना की,

उसी के साथ प्रशस्ति, यज्ञ, ऋचाएं और प्रायश्चित की भी सृष्टि हुई’’। (मूल

रचना में इस स्थान पर कुछ अंश छूटे हुए लगते हैं क्योंकि अगले भाग से

उसका तारतम्य नहीं है)।

‘‘उसकी आंखों में प्रविष्ट होते हुए उससे एक नर चतुष्पद उत्पन्न हुआ जो ब्रह्मा

की तरह कामुक, अवर्णणीय, सनातन, अक्षय, दैहिक संवेदनाओं और गुणों से

रहित था, जो विशिष्ट मेधा से दमक रहा था, चन्द्रमा की किरणों की तरह शुद्ध

था और शब्दों में साकार था। भगवान ने ऋग्वेद की रचना की। उन्होंने अपनी

आंखों से यजुर्वेद को बनाया, जिह्वा के छोर से सामवेद की रचना की और सिर

से अथर्ववेद रचा। अपनी रचना के साथ ही ये वेद क्षेत्र में परिवर्तित हो गए।

फिर उन्हें वेदों के गुरु प्राप्त हुए क्योंकि उन्हें विंदांति प्राप्त हुई। फिर इन वेदों

ने अनादि सनातन ब्रह्मज्ञान की उत्पत्ति की, एक अपने गुणों से सम्पन्न स्वर्गीय

पुरुष की रचना की।’’

उसमें प्रजापति को भी सृष्टा स्वीकार किया गया है: ‘‘इसके पश्चात् जगदीश्वर

सृष्टि की इच्छा से मन ही मन कुछ विचार करने लगे। हिरण्यगर्भ प्रजापति के मुख

से ओ{म् शघ् प्रकट हुआ। भगवान ने उससे कहा तुम अपने स्वरूप का विभाजन

करो। उस पुरुष ने वाणी पर बार-बार विचार किया कि अपने स्वरूप का विभाजन

कैसे करूं, इस विषय में मुझे संदेह है-‘हरिवंश’ का इस बारे में कथन हैः3

1- म्यूर, संस्कृत टैक्स्ट, खंड 1, पृ- 11

2- वही पृ- 11

3- वही पृ- 14

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ऐसा सोचते हुए भगवान के मुख से ओम का उच्चारण हुआ। इस शब्द की

समस्त पृथ्वी, वायु और आकाश में गूंज ध्वनित हुई। इस मस्तिष्क के परम तत्व को

जब देवों के देव बार-बार उच्चारित कर रहे थे, तब उनके हृदय से वषट्कार प्रकट

हुआ। इसके बाद पृथ्वी, वायु, अंतरिक्ष और स्वर्ग की सारभूता ‘‘भूः, भुवः, स्वः’’

महास्मृतिमयी व्याहृतियां जन्मीं। फिर श्रेष्ठ देवी गायत्री पैदा हुई जो चौबीस अक्षरों से

युक्त है। भगवान ने उस पद का स्मरण करके सावित्री मंत्र को प्रकट किया। फिर

प्रजापति ने ब्रह्मयुक्त कर्म के द्वारा ऋव्फ़, साम, अथर्व और यजु नामक चारों वेदों

का प्रादुर्भाव किया।’’

टप्

इस प्रकार वेदों की सृष्टि के विषय में हमारे सामने ग्यारह भिन्न-भिन्न व्याख्याएं

हैं- 1- पुरुष रहस्यात्मक यज्ञ से उत्पन्न हुए, 2- स्कंभ पर आधारित है, 3- उससे

विलगित बालों और मुख से निकले, 4- इन्द्र ने उत्पन्न किए, 5- काल से जन्मे,

6- अग्नि, वायु और सूर्य से उत्पन्न हुए, 7- प्रजापति और जल से पैदा हुए, 8- ब्रह्मा

की श्वांस से निकले, 9- भगवान ने मानस सागर से खोदकर निकाला, 10- ब्रह्मा की

दाढ़ी के बालों से निकले, 11- वाच का विस्तार है।

एक सीधे से सवाल को जो एक पहेली है जवाबों के बियाबान में भटका दिया

गया है। इन प्रश्नों के उत्तर ब्राह्मणों के गढ़े हैं। वे एक ही वैदिक सिद्धांत के मााने

वाले हैं। प्राचीन धार्मिक कहानियों के ये ही गढ़ने वाले हैं। इस सीधे से सवाल के

ऐसे अजीबोगरीब और अव्यवस्थित जवाब क्यों दिए गए?

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