किसी विचारगोष्ठी के लिए यदि कोई मनुस्मृति का अध्ययन करेगा तो वह पाएगा कि उसने जातियों की कई श्रेणियां की हैं। उनके नाम हैं: 1- आर्य जातियां, 2- अनार्य जातियां, 3- व्रात्य जातियां, 4- पतित जातियां और 5- संकर जातियां।
आर्य जातियों का अर्थ है चार वर्णः ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। दूसरे शब्दों में मनु चार वर्णों को आर्यवाद का सार मानते हैं। अनार्य का अर्थ है वे जातियां जो चातुर्वर्ण्य को स्वीकार नहीं करती हैं जिन्हें वह दस्यु कहता है अथात् जिन्हें वह अनार्य1 जाति मानता है। व्रात्य जातियां वे हैं, जो कभी वर्णों को मानती थीं परन्तु बाद में जिन्होंने इसके विरुद्ध विद्रोह कर दिया।
मनु द्वारा वर्णित व्रात्य जातियां निम्न प्रकार हैं:
व्रात्य ब्राह्मण व्रात्य क्षत्रिय व्रात्य वैश्य
- भृग्ग कंटक 1. झल्ल 1. सुधन्वन
- अवन्त्य 2. मल्ल 2. आचार्य
- वाताधान 3. लच्छवी 3. करुष
- पुष्पदा 4. नट 4. विजनमान
- सैख 5. करण 5. मैत्र
- खस 6. सत्वत
- द्रविड़
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- मनु 10-45। यह श्लोक दो कारणों से अत्यंत महत्वपूर्ण है। एक तो यह कि इसमें शूद्रों को दस्यु से भिन्न बताया गया है। दूसरे, इससे पता चलता है कि शूद्र आर्य हैं।
यह 20 पृष्ठ की पाण्डुलिपि है, जिसका शीर्षक है – ‘ओरीजिन आफ मिक्स्ड कास्ट्स’ हालांकि मूल टाइप की पाण्डुलिपि में लेखक ने हाथ से लिखकर कुछ पृष्ठ जोड़े हैं। पाठ में लेखक ने संशोधन भी किए हैं। – संपादक
पतित जातियों में मनु ने उन्हें सम्मिलित किया है जिन क्षत्रियों ने आर्य अनुष्ठान त्याग दिए थे जो शूद्र बन गए थे और ब्राह्मण पुरोहित जिनके यहां नहीं आते थे। मनु ने इनका उल्लेख इस प्रकार किया हैः
- पौंड्रक, 2. चोल, 3. द्रविड़, 4. काम्बोज, 5. यवन, 6. शक, 7. पारद, 8.पल्लव, 9. चीन, 10. किरात, 11. दर्द।
संकर जातियां मनु के अनुसार वे हैं, जिनके माता-पिता का वर्ण भिन्न था।
इन संकर जातियों की भी कई श्रेणियां हैं। विभिन्न आर्यवर्णों की संतानों का भी विभाजन दो श्रेणियों में किया गया है, (क) अनुलोम, (ख) प्रतिलोम 2. अनुलोम और प्रतिलोम से उत्पन्न जातियां, 3. अनार्यों और आर्यों की अनुलाम और
प्रतिलोम संतानों। मनु ने जिन जातियों को संकर जातियों की सूची में रखा है, उनकी विभिन्न श्रेणियां निम्न प्रकार से हैं:
मिश्रित आर्य जातियों की संतानें
पिता माता जाति का नाम अनुलोम अथवा
प्रतिलोम
ब्राह्मण क्षत्रिय ?
ब्राह्मण वैश्य अम्बष्ट अनुलोम
ब्राह्मण शूद्र निषाद (पाराशव) अनुलोम
क्षत्रिय ब्राह्मण सूत प्रतिलोम
क्षत्रिय वैश्य ?
क्षत्रिय शूद्र उग्र अनुलोम
वैश्य ब्राह्मण वैदेहक प्रतिलोम
वैश्य क्षत्रिय मागध प्रतिलोम
वैश्य शूद्र करण अनुलोम
शूद्र ब्राह्मण चाण्डाल प्रतिलोम
शूद्र क्षत्रिय क्षत्रिय प्रतिलोम
शूद्र वैश्य आरोगव प्रतिलोम
- आर्य अनुलोम प्रतिलोम से उत्पन्न जातियां
पिता माता जाति का नाम
- ब्राह्मण उग्र अव्रत्य
- ब्राह्मण अम्बष्ट आभीर
- ब्राह्मण आभीर धिगवन
- शूद्र निषाद कुकुतक
- अनुलोम और प्रतिलोम के बीच विवाह जनित जातियां
पिता माता जाति का नाम
- वैदेह आयोगव मैत्रेयक
- निषाद आयोगव मार्गव (दाल) कैवर्त्त
- निषाद वैदेह कारवर
- वैदेहक अम्बष्ट वेन
- वैदेहक कारवर आन्ध्र
- वैदेहक निषाद मेद
- चाण्डाल वैदेह पाण्डुसोपाक
- निषाद वैदेह अहिंदक
- चाण्डाल पुक्कस श्वपाक (सोपाक)
- चाण्डाल निषाद अन्त्यवासिन
- क्षत्रिय उग्र श्वपाक
संकर जतियों की मनु की सूची में परवर्ती स्मृतिकारों ने वृद्धि की है। इनमें उशनस स्मृति, बौधायन स्मृति, वशिष्ठ स्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति और सूत संहिता के रचियता सम्मिलित हैं।
उशनस स्मृति के नाम इस प्रकार हैं:
संकर जाति का नाम पिता की जाति माता की जाति
- पुलक्ष शूद्र क्षत्रिय
- येकज पुलक्ष वैश्य
- चर्मकारक आरोग्य ब्राह्मण
- वेनुक सूत ब्राह्मण
बौधायन स्मृति में निम्नलिखित नाम जोड़े गएः
संकर जाति का नाम पिता की जाति माता की जाति
- क्षत्रिय क्षत्रिय वैश्य
- ब्राह्मण ब्राह्मण क्षत्रिय
- वेन वैदेहक अम्बष्ट
- श्वपाक उग्र क्षत्रिय
मनु की सूची में वशिष्ठ स्मृति में एक नाम जोड़ा गया हैः
संकर जाति का नाम पिता की जाति माता की जाति
वेन शूद्र क्षत्रिय
मनु- की सूची में याज्ञवल्क्य स्मृति में दो नाम जोड़े गए हैं:
संकर जाति का नाम पिता की जाति माता की जाति
- मुर्धवसिक ब्राह्मण क्षत्रिय
- महिष्य क्षत्रिय वैश्य
सूत संहिता के रचनाकार की बड़ी वृहद सूची है। उसमें तरेसठ जातियां हैं।
संकर जाति का नाम पिता की जाति माता की जाति
- अम्बष्ट क्षत्रिय वैश्य
- उर्ध्वनापित ब्राह्मण वैश्य
- कटकर वैश्य शूद्र
- कुंभकार ब्राह्मण वैश्य
- कुंड ब्राह्मण विवाहित ब्राह्मण
6.गोलक ब्राह्मण विधुर ब्राह्मण
- चक्री शूद्र वैश्य
- दोसन्तया क्षत्रिय शूद्र
- दोसन्ती क्षत्रिय शूद्र
- पटट्नशाली शूद्र वैश्य
- पुलिन्द वैश्य क्षत्रिय
- बह्यादस शूद्र ब्राह्मण
- भोज वैश्य क्षत्रिय
- महिकार वैश्य वैश्य
- मानविक शूद्र शूद्र
- म्लेच्छ वैश्य क्षत्रिय
- शालिका वैश्य क्षत्रिय
- शौडिक ब्राह्मण शूद्र
- सुलिखा ब्राह्मण शूद्र
- सापर्ण ब्राह्मण क्षत्रिय
- आग्नेयनर्तक अम्बष्ट अम्बष्ट
- अपितर ब्राह्मण दौसन्ती
- आश्रमक दंतकेवल शूद्र
- उदबंध सनक क्षत्रिय
- करण नट क्षत्रिय
- कर्मा करण क्षत्रिय
- कर्मकार रेणुका क्षत्रिय
- करमर माहिष्य करण
- कुक्कुण्ड मागध शूद्र
- गुहक श्वपाच ब्राह्मण
- चर्मोपजीवी वैदेशिका ब्राह्मण
- चमकार आयोगव ब्राह्मणी
- चर्मजीवी निषाद करुषी
- तक्ष माहिष्य करण
- तक्षवृति उग्र ब्राह्मण
- दंतकवेलक चाण्डाल वैश्य
- दस्यु निषाद आयोगव
- द्रुमिल निषाद क्षत्रिय
- नट पिछल्ल क्षत्रिय
- नापित निषाद ब्राह्मण
- नीलादिवर्णविक्रेता आयोगव चिरकरी
- पिछल्ल मल्ल क्षत्रिय
- पिंगल ब्राह्मण आयोगव
- भागलब्ध दौसंती ब्राह्मणी
- भरुष सुधन्वा वैश्य
- भैरव निषाद शूद्र
- मातंग विजन्मा वैश्य
- मधुक वैदेहिक आयोगव
- मालाकार दस्यु वैश्य
- मैत्र विजन्मा वैश्य
- रजक विदेह ब्राह्मण
- रथकार माहिष्य करण
- रेणुक नापित ब्राह्मण
- लोहकार माहिष्य ब्राह्मणी
- वर्धकी माहिष्य ब्राह्मण
- वार्य सुधन्वा वैश्य
- विजन्मा भरुष वैश्य
- शिल्प माहिष्य करण
- श्वपच चाण्डाल ब्राह्मणी
- सनक मागध क्षत्रिय
- समुद्र तक्षवृति वैश्य
- सात्वत विजन्मा वैश्य
- सुनिषाद निषाद वैश्य
मनु द्वारा रचित पांच जातियों की श्रेणियों में से चार को तो सरलता से समझा जा सकता है। परन्तु इनमें से पांचवी श्रेणी संकर जाति के विषय में भी ऐसे ही नहीं कहा जा सकता। मस्तिष्क में अनेक प्रश्न उठते हैं। पहली बात तो यह है कि मनु की यह सूची यंत्रवत् है। यह एक सम्पूर्ण सूची नहीं है, जिसमें संकर जातियों की सभी संभावनाएं हों।
अनुलोम और प्रतिलोम विवाहों से आर्य जातियों से उत्पन्न मिश्रित जातियों के विषय में चर्चा आती है तो मनु द्वारा जातियों के नाम स्पष्ट किए जाने चाहिए थे। चार में से प्रत्येक वर्ण के बारह अनुलोम-प्रतिलोम जातियां जन्मी। यदि उन्होंने ऐसा किया होता तो अड़तालिस जातियां बननी चाहिए थीं। दरअसल उन्होंने मिश्रित विवाहों से जनित केवल चार जातियों का उल्लेख किया है।
अनुलोम और प्रतिलोम विवाहों के कारण जन्मी 144 जातियों की सूची मनु को प्रस्तुत करनी चाहिए थी, क्योंकि इन विवाहों की संख्या बारह है। वास्तव में मनु ने केवल ग्यारह जातियां बताई हैं। इन ग्यारह जातियों के निर्माण के विषय में उन्होंने केवल पांच के मिश्रण का उल्लेख किया है। इनमें से एक (वैदेह) अनुलोम प्रतिलोम की सूची से बाहर है। आठ का प्रसंग छोड़ ही दिया गया है।
आर्य और अनार्य जातियों के मेल से उत्पन्न संकर जातियों के विषय में भी उनके कथन में विसंगति है। हमें सर्वप्रथम तो आर्यों के प्रत्येक वर्ण के अनार्यों से मिश्रण में उत्पन्न जातियों की सूची प्राप्त होनी चाहिए थी। यह अप्राप्य है। हम यह मान लेते हैं कि एक ही अनार्य जाति दस्तु थी। फिर भी हमें प्रत्येक अनुलोम प्रतिलोम के प्रतिफल में 12 जातियों का ज्ञान होना चाहिए। वास्तव में मनु ने केवल एक-मिश्रण का उल्लेख किया है।
संकर जातियों पर विचार करते समय मनु ने व्रात्य और आर्य जातियों के मिश्रण पर ध्यान नहीं दिया। व्रात्य और अनुलोम-प्रतिलोम का भी कोई उल्लेख नहीं है और न व्रात्य और अनार्य जातियों के संयोग का।
मनु की इन त्रुटियों में कुछ तो ज्वलंत और महत्वपूर्ण हैं। ब्राह्मण और क्षत्रियों से उत्पन्न संकर जाति को लेते हैं। मनु इस संबंध में मौन हैं कि इनमें कौन सी जाति बनी। न ही उन्होंने यह स्पष्ट किया है कि वे विवाह अनुलोम थे अथवा प्रतिलोम। मनु ने यह उल्लेख नहीं किया। क्या ऐसा मान लें कि उनके समय ऐसी संकर जातियां उत्पन्न ही न हुई हों? या वे ऐसा उल्लेख करने से भय खाते थे? यदि वह बात थी तो डर किस का था?
मनु तथा अन्य स्मृतिकारों ने संकर जातियों के जो नाम गिनाए हैं, उनमें से कुछ जाली लगते हैं क्योंकि जिन जातियों को जारज उत्पत्ति का बताया गया है, मनु से पूर्व उनका नाम किसी ने नहीं सुना था और न यह पता चलता है कि तब से आज तक वे कहां विलीन हैं। आज उनका कोई पता नहीं है और कभी उनका उल्लेख नहीं मिलता। जाति एक अमिट परंपरा है और एक बार बन जाने पर उसका अलग अस्तित्व जारी रहता है जब तक कि उसे लुप्त हो जाने का कोई विशेष कारण न हो। ऐसा हो तो सकता है किन्तु नाममात्र को।
ये आयोगव, धिगवान, उग्र, पुक्कस, श्वपाक, श्वपच, पांडुश्वपाक, अहिंदक, बंदिका मट्टा, महिकार, शालिका, शंडिका, शुलिका, यकज, कुकुंद कौन हैं? यह तो थोड़े से ही गिनाए गए हैं। ये कहां गए? इनका क्या हुआ?
अब हम मनु की अन्य स्मृतिकारों से तुलना करें। उन्होंने किन जातियों का उल्लेख किया है। क्या वे इन संकर जातियों की उत्पत्ति के विषय में एकमत हैं? ऐसा नहीं है। यह निम्नांकित तालिका से स्पष्ट है-
- आयोगव
स्मृति पिता माता
- मनु शूद्र वैश्य
- उशनस वैश्य क्षत्रिय
- याज्ञवल्क्य शूद्र वैश्य
- बौधायन वैश्य क्षत्रिय
- अग्नि पुराण शूद्र क्षत्रिय
- उग्र
स्मृति पिता माता
- मनु क्षत्रिय शूद्र
- उशनस ब्राह्मण शूद्र
- याज्ञवल्क्य क्षत्रिय वैश्य
- वशिष्ठ क्षत्रिय वैश्य
- सूत वैश्य शूद्र
- निषाद
स्मृति पिता माता
- मनु ब्राह्मण शूद्र
- उशनस ब्राह्मण शूद्र
- बौधायन ब्राह्मण शूद्र
- याज्ञवल्क्य ब्राह्मण शूद्र
- सूत संहिता ब्राह्मण शूद्र
- सूत संहिता ब्राह्मण वैश्य
- वशिष्ठ वैश्य शूद्र
- पुक्कस
स्मृति पिता माता
- मनु निषाद शूद्र
- बृहद् विष्णु शूद्र क्षत्रिय
- मागध
स्मृति पिता की जाति माता की जाती
- मनु वैश्य क्षत्रिय
- सूत वैश्य क्षत्रिय
- बौधायन शूद्र वैश्य
- याज्ञवल्क्य वैश्य क्षत्रिय
- बृहद विष्णु वैश्य क्षत्रिय
- बृहद विष्णु शूद्र क्षत्रिय
- बृहद विष्णु वैश्य ब्राह्मण
- रथकार
स्मृति पिता की जाति माता की जाति
- उशनस क्षत्रिय ब्राह्मण
- बौधायन वैश्य शूद्र
- सूत क्षत्रिय ब्राह्मण
- वैदेहक
स्मृति पिता की जाति माता की जाति
- मनु शूद्र वैश्य
- मनु वैश्य ब्राह्मण
- याज्ञवल्क्य वैश्य ब्राह्मण
यदि विभिन्न स्मृतियों में संकर जातियों की उत्पत्ति के विषय में हुए उल्लेखों पर ध्यान दिया जाए तो फिर विचारों में इतनी व्यापक भिन्नता क्यों है? दो जातियों के मेल से तीसरी जाति की रचना तार्किक हो सकती है परन्तु उन्हीं दो वर्णों के मिश्रण से भिन्न-भिन्न जातियां कैसे बन गईं? यही तो मनु और उनके अनुयायी कहे गए हैं। निम्नांकित तथ्यों को देखें:
- क्षत्रिय पिता और वैश्य माता का संयोगः
क. बौधायन कहते हैं कि वह संतति क्षत्रिय हैं।
ख. याज्ञवल्क्य का कथन है कि वह महिष्य है।
ग. सूत का मत है कि यह अम्बष्ट है।
- शूद्र पिता और क्षत्रिय माता का संयोगः
क. मनु कहते हैं कि वह संतति क्षत्रिय है।
ख. उशनस के अनुसार पुलक्ष है।
ग. वशिष्ठ का मत है कि वह वेन है।
- ब्राह्मण पिता और वैश्य माता का मेलः
क. मनु के अनुसार संतति अम्बष्ट है।
ख. सूत का मत है वह अर्ध्वनापित है। उसका एक और कथन है कि वह कुंभकार है।
- वैश्य पिता और क्षत्रिय माता का मेलः
क. मनु की दृष्टि में वह संतति मागध है।
ख. सूत का मत हैः 1. भोज, 2. म्लेच्छ, 3. शालिक, 4. पुलिंद ये एक ही मिश्रण की जातियां हैं।
- क्षत्रिय पिता और शूद्र माता का मेलः
क. मनु का कथन है वह संतति उग्र है।
ख. सूत के अनुसार, 1. दौसंतया, 2. दौसंती और 3. शुलिका एक ही मिश्रण से बने हैं।
- शूद्र पिता और वैश्य माता का मेलः
क. मनु का कथन है, वह संतत आयोगव है।
ख. सूत ने उसे- 1. पटट्नशाली, और 2. चक्री कहा है।
अब एक अन्य प्रश्न पर विचार किया जाए। क्या संकर जातियों की उत्पत्ति के विषय में मनु की व्याख्याएं ऐतिहासिक रूप से सत्य हैं?
आभीर से आरम्भ करते हैं। मनु कहते है कि ये ब्राह्मण पुरुष और अम्बष्ट नारी की जारज संतान है। इस संबंध में इतिहास क्या कहता है? इतिहास कहता है कि आभीर (जिसका अपभ्रंश अहीर है) एक चरवाहा जनजाति थी जो सिंध कहे जाने वाले निचले उत्तर-पश्चिमी जिलों में विचरते थे। वह एक स्वतंत्र शासक जनजाति थी और विष्णु पुराण1 के अनुसार आभीरों ने मगध विजय कर लिया था एवं कई वर्षों तक वहां शासन किया।
अम्बष्टों2 के विषय में मनु का कथन है कि वे ब्राह्मण पुरुष और वैश्य स्त्री की संतान हैं। पतंजलि का कथन है कि अम्बष्ट लोग अम्बष्ट देश के निवासी हैं। यह निर्विवाद है कि अम्बष्ट एक स्वतंत्र जनजाति थी। चन्द्रगुप्त मौर्य की राजसभा में यूनानी दूत मेगस्थनीज ने अम्बष्टों का उल्लेख किया है कि वह पंजाब की एक जनजाति थी जिसने भारत पर सिकंदर के आक्रमण के समय उसके साथ युद्ध किया। अम्बष्टों का महाभारत में भी उल्लेख है। उनकी राज्य-व्यवस्था और शौर्य का सम्मानजनक वर्णन है।
मनु कहते हैं कि आंध्र3 द्वितीय श्रेणी की जारज संतान थी जो वैदेहक पुरुष और कारवार स्त्री से उत्पन्न बताए गए हैं, जो स्वयं जारज थे। ऐतिहासिक साक्ष्य नितांत भिन्न हैं। आंध्र वे लोग हैं जो दक्षिण के पठार के पूर्वी भाग में निवास करते हैं। आंध्रों का मेगस्थनीज ने भी उल्लेख किया है। प्लीनी द एल्डर (77 ई-) ने वर्णन किया है कि यह दक्षिणवासी एक शक्तिशाली जाति है जिसकी दक्षिण में सार्वभौम सत्ता है। उनके अधिकार में अनेक गांव हैं जिनके तीन नगरों का परकोटा है, उनकी रक्षा खाई खंदकों से होती और अपने राजा को एक लाख पैदल, दो हजार अश्वारोही और एक हजार हाथी उपलब्ध कराते हैं।
मनु के अनुसार मागध4 वैश्य पुरुष और क्षत्रिय नारी से उत्पन्न जारज संतान हैं। वैयाकरण पाणिनि ने “मगध” की व्युत्पत्ति भिन्न प्रकार से की है। उनके अनुसार फ्मागध” का अर्थ है मगध देशवासी। इस समय मगध का अर्थ है बिहार के पटना और गया जनपद। ज्ञात समय से ही उन्हें स्वतंत्र सार्वभौम बताया गया है, उनका
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- भाग 4, अध्या 24
- अम्बष्टों के लिए देखें जायसवाल की, हिन्दू पोलिटी, भाग 1, पृ. 73-4
- आंध्र के लिए देखिए, ‘अर्ली डायनैस्टिज आफ आंध्र देश’ भावराजू वेंकट कृष्ण राव। उन्हें सातवाहन भी कहा जाता है।
- मगध के इतिहास के लिए देखें एंसिएंट इण्डियन ट्राइब्स, अध्याय 4: बी.सी. ला
सर्वप्रथम उल्लेख अथर्ववेद में आया है। प्रसिद्ध जरासंध मगध का राजा था, जो पांडवों का समकालीन था।
मनु का कथन है कि निषाद ब्राह्मण पुरुष और शूद्र स्त्री की जारज संतान हैं। इतिहास के साक्ष्य बिल्कुल भिन्न हैं। निषाद एक देशी जनजाति थी, जिनका स्वतंत्र प्रदेश और अपने राजा होते थे। यह एक बहुत प्राचीन जनजाति है। रामायण में गुहा को निषाद राज बताया गया है, जिसकी राजधानी श्रृंगवेरपुर थी। जब राम वनवास को जा रहे थे, तो उसने उनका आतिथ्य किया था।
वैदेहक के विषय में मनु का मत है कि वे वैश्य पुरुष और ब्राह्मण स्त्री की जारज संतान हैं। व्युत्पत्ति शास्त्र के अनुसार वैदेहक1 का अर्थ विदेह देश के निवासी से है। प्राचीन विदेह बिहार के दरभंगा और चम्पारन जनपद में स्थित था। यह देश और इस के निवासियों का इतिहास अत्यन्त प्राचीन है। यजुर्वेद में भी इसका उल्लेख है। राम की पत्नी सीता, जनक की पुत्री थी, जो विदेह के राजा थे। उसकी राजधानी मिथिला थी। ऐसे और भी बहुत से तथ्यों की विवेचना की जा सकती है। ये ही पर्याप्त हैं। इनके आधार पर कहा जा सकता है कि मनु ने इतिहास को भ्रष्ट कर डाला और अत्यंत सम्मानित तथा शक्तिशाली जनजातियों को जारज घोषित कर दिया। बड़े-बड़े समुदायों को थोक के भाव जारज बता डालने वाले मनु ने व्रात्यों को छोड़ दिया। परन्तु परवर्तियों ने वही कार्यक्रम जारी रखा और व्रात्यों को भी जारज कह दिया। मनु के अनुसार कर्ण व्रात्य थे। परन्तु ब्रह्मवैवर्त पुराण ने उन्हें जारज बताया है और कहा है कि वे वैश्य पिता और शूद्र माता की संतान हैं। मनु ने पौंड्रकों को व्रात्य माना है। किन्तु ब्रह्मवैवर्त पुराण में उन्हें वैश्य पिता और चुन्दी माता की संतान बताया है। मल्ल को मनु व्रात्य कहते हैं किन्तु ब्रह्वैवर्त पुराण में वे लेत्त पिता और तीव्र माता से उत्पन्न हुए हैं। वृहज्जकौतुक को मनु व्रात्य ब्राह्मण मानते हैं। परन्तु गौतम संहिता में वे ब्राह्मण पिता और वैश्य मां के पुत्र-पुत्री हैं। मनु ने यवनों को व्रात्य क्षत्रिय घोषित किया है। लेकिन गौतम संहिता में वे क्षत्रिय पिता और शूद्र मां से जन्मे हैं। मनु किरातों को व्रात्य क्षत्रिय कहते हैं। वल्लाल चरित्र में उन्हें वैश्य पिता और ब्राह्मण माता की संतान कहा गया है।
यह स्पष्ट है कि मनु ने जिन जातियों को जारज कहा है, उनमें से कई की उत्पत्ति स्वतंत्र है, फिर भी मनु और अन्य स्मृतिकार उन्हें जारज बताते हैं। उनके प्रति ऐसा पागलपन क्यों? क्या उनके पागलपन की कोई पद्धति है?
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- विदेह के इतिहास के लिए देखें क्षत्रिय क्लांस इन बुद्धिस्ट इंडिया, भाग 2, अध्याय 1 द्वारा बी.सी. ला
इन तथ्यों पर विचार करने के पश्चात् यह एक पहेली ही है कि मनु ने संकर जातियों का प्रश्न क्यों खड़ा किया। आखिर इसके पीछे उनका तात्पर्य क्या था?
ऐसा संभव है कि मनु को यह बात समझ में आ गई थी कि चातुर्वर्ण्य-व्यवस्था का ढांचा चरमरा रहा है और उन जातियों की बड़ी उपस्थिति जो ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य अथवा शूद्रों की परिधि में नहीं आती थीं, चातुर्वर्ण्य के विफल हो जाने का उत्तम प्रमाण था। इसलिए उन्हें चातुर्वर्ण्य के नियमों को अनदेखा करके चातुर्वर्ण्य से बाहर की जातियों के अस्तित्व के विषय में प्रकाश डालने के लिए विवश होना पड़ा।
पर क्या मनु ने अनुभव किया कि उन्होंने जो व्याख्या की थी, वह कैसी भयानक थी। उनकी व्याख्या के क्या अर्थ निकलते हैं?
उनके कथन से समाज के मानव-चरित्र और विशेषकर स्त्री जाति पर क्या कलंक पुत गया है? यह स्पष्ट है कि पुरुष और नारियों के बीच गुप्त संबंध थे क्योंकि चातुर्वर्ण्य ने प्रतिबंधित कर दिया था। किन्तु ये गुप्त संबंध इक्का-दुक्का रहे होंगे। वे बड़े स्तर पर नहीं हो सकते थे। परन्तु जब तक हम यह नहीं समझ लेते कि बड़े दुराचार इतने व्यापक स्तर पर विद्यमान थे, इस बात का औचित्य नहीं ठहराया जा सकता कि मनु द्वारा वर्णित इतने सारे चाण्डाल और अस्पृश्य समाज में पैदा हो गए हैं।
मनु ने कहा है कि चाण्डाल जाति ब्राह्मण स्त्री और शूद्र पुरुष के बीच अवैध संभोग का परिणाम है। क्या यह सच हो सकता है? इसका अर्थ तो यह हुआ कि ब्राह्मण स्त्रियों का चरित्र बहुत भ्रष्ट रहा होगा। शायद इसका अर्थ शूद्रों1 से संभोग करने को उनके मन में विशेष आकर्षण हो। क्या इस पर विश्वास किया जा सकता है?
चाण्डलों की जनसंख्या इतनी अधिक है कि यदि प्रत्येक ब्राह्मण स्त्री भी एक शूद्र की रखैल रही होगी तो भी समाज में चाण्डाल इतने अधिक पैदा न होते जितनी कि चाण्डालों की जनसंख्या है।
संकर जाति संबंधी इस सिद्धान्त के प्रतिपादन से पहले क्या मनु ने सोचा कि इस देश में इतने अधिक जन-समुदाय को अकुलीन घोषित कर दिया जाए और वे सामाजिक एवं नैतिक दृष्टि से नीच कहलाए जाकर समाज में रहें? उन्होंने क्यों कहा कि जातियां दोगली हैं जबकि वास्तव में इन जातियों का स्वतंत्र अस्तित्व था?
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- मेगस्थनीज का कथन है कि ब्राह्मणों को अपनी पत्नियों पर संदेह है इसलिए उन्होंने अपने दार्शनिक सिद्धांत उन्हें नहीं बताए कि कहीं वे इन्हें कुपात्रों को न बता दें।