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बौद्ध धर्म एक क्रांति थी। यह उतनी ही महान क्रांति थी, जितनी फ्रांस की क्रांति।
यद्यपि यह धार्मिक क्रांति के रूप में प्रारंभ हुई, तथापि यह धार्मिक, क्रांति से बढ़कर थी।
यह सामाजिक और राजनैतिक क्रांति बन गई थी। यह समझने के लिए कि इस क्रांति का
चरित्र कितना गूढ़ है, यह जानना आवश्यक है कि क्रांति के आरंभ होने से पहले समाज
की स्थिति कैसी थी। फ्रांस की क्रांति की भाषा में कहा जाए तो भारत की प्राचीन शासन
प्रणाली का चित्रण आवश्यक है।
बुद्ध के उपदेशों से आए महान सुधार को समझने के लिए यह आवश्यक है कि
बुद्ध द्वारा अपने जीवन का मिशन शुरू करते समय आर्यों की सभ्यता की विकृत स्थिति
पर विचार किया जाए।
उनके समय का आर्य समुदाय सामाजिक, धार्मिक और आध्यात्मिक रूप से सबसे
निकृष्ट विलासिता में डूबा हुआ था।
कुछ सामाजिक बुराइयों का उल्लेख करने के लिए जुए की ओर ध्यान दिलाया जा
सकता है। आर्यों में सुरा पान के अलावा जुआ भी व्यापक रूप से खेला जाता था।
प्रत्येक राजा के यहां जुआ खेलने के लिए महल के साथ ही एक मंडप हुआ करता
था। हर राजा जुए के विशेषज्ञ को नौकरी पर रखता था, जो खेल के समय राजा का
सहायक हुआ करता था। सम्राट विराट की सेवा में कंक जैसा जुआ विशेषज्ञ नौकरी
करता था। जुआ राजाओं का केवल मनोरंजन का साधन ही नहीं था। वे बड़े-बड़े दांव
लगाकर खेलते थे। वे राज्यों, आश्रितों, रिश्तेदारों, गुलामों आदि को दांव पर लगा देते थे।1
राजा नल जुए में पुष्कर के साथ खेलते हुए हर चीज को दांव पर लगाकर हार गए।
केवल स्वयं को और अपनी पत्नी दमयंती को दांव पर नहीं लगाया। नल को जंगल में
जाकर एक भिखारी के रूप में रहना पड़ा। कुछ ऐसे राजा भी थे, जो नल से भी आगे
- महाभारत, वन पर्व
बढ़ गए थे। महाभारत 2 से पता चलता है कि पांडवों के सबसे बड़े भाई धर्मराज युधिष्ठिर
ने जुए में अपने छोटे भाइयों और पत्नी द्रौपदी सहित सब कुछ दांव पर लगा दिया था।
जुआ आर्यों के लिए सम्मान का प्रतीक था, और जुए का कोई आमंत्रण सम्मान और
प्रतिष्ठा के लिए चुनौती माना जाता था। धर्मराज युधिष्ठिर द्वारा जुआ खेलने के अनर्थकारी
परिणाम हुए, यद्यपि उन्हें ऐसे परिणाम की पहले ही चेतावनी दी जा चुकी थी। उनका
बहाना यह था कि उन्हें जुए का आमंत्रण मिला था, और एक सम्माननीय व्यक्ति होने
के नाते वह ऐसा आमंत्रण ठुकरा नहीं सकते थे।
जुए का दुर्गुण सिर्फ राजाओं तक सीमित नहीं था। यहां तक कि आम आदमी भी
इससे ग्रसित था। ऋग्वेद में जुए से बर्बाद हुए आर्य के विलाप का विवरण मिलता है।
कौटिल्य के समय में जुआ खेलना इतनी आम बात हो गई थी कि जुआघरों को राजा
द्वारा अनुमति-पत्र दिए जाते थे, जिससे राजा को यथेष्ट राजस्व मिलता था।
शराब पीना दूसरी बुराई थी, जो आर्यों में प्रचंड रूप से फैली हुई थी। शराब दो प्रकार की
हुआ करती थी-सोम और सुरा। सोम यज्ञीय शराब थी। प्रारंभ में ब्राह्मणों, क्षत्रियों और वैश्यों
को सोम पीने की अनुमति थी। बाद में ब्राह्मणों और क्षत्रियों को इसके पीने की अनुमति दी
गई। वैश्यों को इसे पीना वर्जित कर दिया गया था, और शूद्रों को तो इसका स्वाद चखने की
भी अनुमति नहीं थी। इसका बनाना एक गुप्त प्रक्रिया थी, जिसकी जानकारी केवल ब्राह्मणों
को थी। सुरा पीने की अनुमति सभी को थी तथा इसे सभी पीते थे। ब्राह्मण सुरा भी पीते थे।
असुरों के पुरोहित शुक्राचार्य ने इतनी अधिक पी ली थी कि नशे की स्थिति में उन्होंने मृत
संजीवनी मंत्र ही बता दिया, जो केवल वही जानते थे, तथा जिसका वह देवों द्वारा मारे गए
असुरों को जीवित करने के लिए प्रयोग करते थे। यह मंत्र उन्होंने देवों के पुरोहित बृहस्पति
के पुत्र कच को बताया था। महाभारत में एक प्रसंग है कि एक बार कृष्ण और अर्जुन ने
अत्यधिक सोमरस पी लिया था। यह दर्शाता है कि आर्यों के समाज में सर्वश्रेष्ठ न सिर्फ
शराब पीने के आदी थे, बल्कि वे बहुत अधिक शराब पीते थे। सबसे शर्मनाक बात तो
यह है कि आर्य महिलाएं भी शराब पीने की आदी थीं। उदाहरण के लिए, राजा विराट
की पत्नी सुदेशना1 ने अपनी चेरी सैरंध्री को कहा कि कीचक के महल से सुरा ले आओ,
क्योंकि वह पीने के लिए मरी जा रही है। इसका अर्थ यह नहीं लगाया जाना चाहिए कि
केवल रानियां ही शराब पीती थीं। शराब पीने की आदत हर वर्ग की महिलाओं में सामान्य
बात थी, और यहां तक कि ब्राह्मण महिलाएं भी इस आदत से बची हुई नहीं थीं। आर्य
महिलाएं शराब पीती थीं और नाचती थीं, यह कौसीतकी गृह्य सूत्र (1.11.12) से स्पष्ट
हो जाता है। सूत्र कहता हैः ‘चार या आठ सधवा महिलाएं शराब और भोजन का सेवन
कर लेने के बाद वैवाहिक समारोह से पहले की रात में चार बार नाचेंगी।’ निम्न वर्ग की
- वही, सभा पर्व
- महाभारत, वन पर्व, अध्याय 15-10
महिलाओं की क्या कहें, सातवीं और आठवीं शताब्दी में आर्यावर्त के मध्य क्षेत्र में ब्राह्मण
महिलाएं शराब पीया करती थीं, जो कुमारिल भट्ट की तंत्र वर्तिका (1.3.4) से स्पष्ट
है जिसमें कहा गया है, ‘आधुनिक दिनों के लोगों में हम पाते हैं कि अहिछत्र तथा मथुरा
देश की ब्राह्मण महिलाएं शराब पीने की आदी हैं।’ कुमारिल ने केवल ब्राह्मणों की पीने
की आदत की ही निंदा की है। लेकिन क्षत्रियों और वैश्यों की पीने की आदत की निंदा
नहीं की है, यदि शराब फल या फूलों से (अर्थात् माधवी) और शीरे (गुड़) की हो, न
कि अनाजों से बनी सुरा।
आर्यों के समाज की यौन अनैतिकता जानकर उनके वर्तमान वंशजों को सदमा
पहुंचेगा। बुद्ध से पहले के दिनों में आर्यों में यौन तथा वैवाहिक संबंधा को संचालित
करने के लिए आज की प्रतिबंधित श्रेणियों जैसा नियम नहीं था।
आर्य धर्मग्रंथों के अनुसार, ब्रह्मा सृष्टि का रचयिता है। ब्रह्मा के तीन पुत्र और एक
पुत्री थी। उसके एक पुत्र दक्ष ने अपनी बहन से विवाह किया। इस भाई-बहन के विवाह
से जो पुत्रियां पैदा हुईं, उनमें से कुछ ने ब्रह्मा के पुत्र मारीचि के पुत्र कश्यप से विवाह
कर लिया और कुछ ने ब्रह्मा के तीसरे पुत्र धर्म से विवाह कर लिया।1
ऋग्वेद में एक प्रसंग है कि यम और यमी भाई-बहन थे। इस प्रसंग के अनुसार,
यमी अपने भाई यम को सहवास के लिए आमंत्रित करती है और उसके ऐसा करने से
इंकार करने पर क्रोधित हो जाती है।2
पिता अपनी पुत्री से विवाह कर सकता था। वशिष्ठ ने अपनी पुत्री शतरूपा के वयस्क
हो जाने पर उससे विवाह किया था।3 मनु ने अपनी पुत्री इला से विवाह किया था।4 जह्नु
ने अपनी पुत्री जाह्नवी से विवाह किया।5 सूर्य ने अपनी पुत्री उषा से विवाह किया था।6
बहुपति-प्रथा प्रचलित थी, जो साधारण किस्म की नहीं थी। आर्यों में जो बहुपति-प्रथा
पाई जाती थी, उसमें एक ही परिवार के कई लोग एक ही औरत से सहवास करते थे।
धहाप्रचेतनी और उसके पुत्र सोम ने मरीशा (सोम की पुत्री) से सहवास किया।7
दादा द्वारा अपनी पौत्री से विवाह रचाने के उदाहरण कम नहीं हैं। दक्ष ने अपनी
पुत्री पिता ब्रह्मा8 के साथ ब्याह रचाने के लिए दे दी थी, और इस ब्याह से प्रसिद्ध नारद
- महाभारत, आदि पर्व, अध्याय 66
- ऋग्वेद
- हरिवंश, अध्याय 2
- वही, अध्याय 10
5- वही, अध्याय 27
6- यास्क निरुत्तफ़, अध्याय 5, खंड 6
7- हरिवंश, अध्याय 2
8- वही, अध्याय 3
प्राचीन शासन प्रणालीः आर्यों की सामाजिक स्थिति
8 बाबासाहेब डॉ- अम्बेडकर संपूर्ण वाघ्मय
का जन्म हुआ था। दौहित्र ने अपनी 27 पुत्रियों को अपने पिता सोम को सहवास और
प्रजनन के लिए दे दिया था।1
फ्आर्यों को औरत के साथ खुले आम लोगों की आंखों के सामने सहवास करने
में कोई आपत्ति नहीं थी। ऋषि एक धार्मिक अनुष्ठान किया करते थे, जिसे वामदेव्या
व्रत कहते थे। यह अनुष्ठान यज्ञ-भूमि पर किया जाता था। यदि कोई औरत वहां आकर
सहवास की इच्छा व्यक्त करती थी और ऋषि से अपनी संतुष्टि के लिए कहती थी,
तो ऋषि उसी समय वहीं खुले में यज्ञ-भूमि पर उसके साथ सहवास किया करते थे।
इसके कई उदाहरण दिए जा सकते हैं। ऋषि पराशर को ही लीजिए। उन्होंने सत्यवती
के साथ इसी प्रकार सहवास किया था। ऋषि दीर्घतप ने भी ऐसा किया था। ‘अयोनि’
शब्द के अस्तित्व से पता चलता है कि यह रिवाज एक सामान्य बात थी। ‘अयोनि’
शब्द का अर्थ निष्पाप गर्भधारण समझा जाता है। लेकिन इस शब्द का मूल अर्थ
यह नहीं है। ‘योनि’ शब्द का मूल अर्थ ‘घर’ होता है। ‘अयोनि’ शब्द का अर्थ घर
के बाहर, अर्थात खुले स्थान पर गर्भधारण करना होता है। सीता और द्रौपदी, दोनों
अयोनिजा थीं। इस तथ्य से पता चलता है कि इसे गलत नहीं माना जाता था। इस
प्रथा को रोकने के लिए धार्मिक निषेधादेश जारी करना पड़ा था।2 इससे भी स्पष्ट है
कि यह एक सामान्य बात थी।
आर्यों में अपनी औरतों को कुछ अवधि के लिए भाड़े पर देने की प्रथा भी थी।
उदाहरण के लिए, माधवी3 की कहानी का उल्लेख किया जा सकता है। राजा ययाति ने
अपने गुरु गालव को अपनी पुत्री माधवी भेंट में दे दी थी। गालव ने माधवी को तीन
राजाओं को अलग-अलग अवधि के लिए भाड़े पर दे दिया। उसके बाद उसने उसे विवाह
रचाने के लिए विश्वामित्र को दे दिया। वह पुत्र उत्पन्न होने तक उनके साथ रही। उसके
बाद गालव ने लड़की को वापस लेकर पुनः उसके पिता ययाति को लौटा दिया।
अस्थाई तौर पर स्त्रियों को भाड़े पर देने की प्रथा के अलावा, आर्यों में एक अन्य
प्रथा प्रचलित थी, अर्थात् उनमें से सर्वोत्तम पुरुषों को संतानोत्पत्ति की अनुमति देना। वे
परिवार वृद्धि को ऐसा मानते थे, मानो वह प्रजनन अथवा वंश संवर्धन हो। आर्यों में
लोगों का एक ऐसा वर्ग होता था, जिसे देव कहते थे, जो पद और पराक्रम में श्रेष्ठ
माने जाते थे। अच्छी संतानोत्पत्ति के उद्देश्य से आर्य लोग देव वर्ग के किसी भी पुरुष
के साथ अपनी स्त्रियों को संभोग करने की अनुमति देते थे। यह प्रथा इतने व्यापक रूप
से प्रचलित थी कि देव लोग आर्य स्त्रियों के साथ पूर्वास्वादन को अपनी आदेशात्मक
- हरीवंश, अध्याय 3
- महाभारत, आदि पर्व, अध्याय 193
- वही, उद्योग पर्व, अध्याय 106-123
9
अधिकार समझने लगे। किसी भी आर्य स्त्री का उस समय तक विवाह नहीं हो सकता
था, जब तक कि वह पूर्वास्वादन के अधिकार से तथा देवों के नियंत्रण से मुक्त नहीं
कर दी जाती थी। तकनीकी भाषा में इसे ‘अवदान, कहते थे। ‘लाज होम’ अनुष्ठान
प्रत्येक हिंदू विवाह में किया जाता है, जिसका विवरण आश्वलायन गृह्य सूत्र में मिलता
है। ‘लाज होम’ देवों द्वारा आर्य स्त्री को पूर्वास्वादन के अधिकार से मुक्त किए जाने का
स्मृति चिन्ह है। ‘लाज होम’ में ‘अवदान’ एक ऐसा अनुष्ठान है, जो देवों के वधू के
ऊपर अधिकार के समापन की कीमत करता है। सप्तपदी सभी हिंदू विवाहों का सबसे
अनिवार्य धर्मानुष्ठान है, जिसके बिना हिंदू विवाह को कानूनी मान्यता नहीं मिलती।
सप्तपदी का देवों के पूर्वास्वादन के अधिकार से अंगभूत संबंध है। सप्तपदी का अर्थ है,
वर का वधू के साथ सात कदम चलना। यह क्यों अनिवार्य है? इसका उत्तर यह है कि
यदि देव क्षतिपूर्ति से असंतुष्ट हों तो वे सातवें कदम से पहले दुल्हन पर अपना अधिकार
जता सकते थे। सातवां फेरा लेने के बाद देवों का अधिकार समाप्त हो जाता था और
वर, वधू को ले जाकर, दोनों पति और पत्नी की तरह रह सकते थे। इसके बाद देव न
कोई अड़चन डाल सकते थे और न ही कोई छेड़खानी कर सकते थे।
कुमारी के लिए कौमार्य का कोई नियम नहीं था। कोई भी लड़की बिना विवाह
किए किसी भी पुरुष के साथ संभोग कर सकती थी, और उससे संतान भी उत्पन्न कर
सकती थी। ‘कन्या’ शब्द के मूल अर्थ से यह स्पष्ट है। ‘कन्या’ शब्द के मूल में ‘काम’
शब्द है, जिसका अर्थ है कि लड़की स्वयं को किसी भी पुरुष के समक्ष अर्पित करने
के लिए स्वतंत्र है। कुंती और मत्स्यगंधा के उदाहरण हैं कि विधिवत विवाह किए बिना
उन्होंने अपने-आपको किसी अन्य पुरुष को अर्पित किया और बच्चे भी उत्पन्न किए।
कुंती ने पांडु से विवाह रचाने से पहले अलग-अलग कई आदमियों के साथ संभोग
किया और बच्चे पैदा किए। मत्स्यगंधा ने भीष्म के पिता शांतनु से विवाह रचाने से पहले
ऋषि पराशर के साथ संभोग किया।
पशुओं के साथ यौनाचार करना भी आर्यों में प्रचलित था। ऋषि किंदम द्वारा हिरणी
के साथ मैथुन किए जाने की कहानी सर्वविदित है। एक दूसरा उदाहरण सूर्य द्वारा घोड़ी
के साथ मैथुन किए जाने का है। लेकिन सबसे वीभत्स उदाहरण अश्वमेघ यज्ञ में स्त्री
द्वारा घोड़े के साथ मैथुन किए जाने का है।
(मूल अंग्रेजी में इस अध्याय के ग्यारह टाइप किए हुए पृष्ठ एक फाइल में बंधे
हुए थे। अंतिम पृष्ठ से पता चलता है कि यह अध्याय अपूर्ण है-संपादक)
प्राचीन शासन प्रणालीः आर्यों की सामाजिक स्थिति