हिन्दू लोग प्रायः यह शिकायत करते हैं समाज में अलग से असामाजिक तत्त्वों का कोई
दल है जो असामाजिक बुराईयों या भावना का कारण है, लेकिन वे अपनी सुविधाा के लिए
यह भूल जाते हैं कि यह असामाजिक भावना उनकी अपनी जातिप्रथा का ही एक सबसे
घृणित पक्ष है। एक जाति के लोग आनंद लेकर ऐसे गीत गाते हैं, जिनमें दूसरी जाति के
प्रति नफ़रत छिपी रहती है। पिछले विश्व यु) में जर्मन लोगों ने भी अंग्रेजों के विरु) ऐसे
ही अपमान भरे गीत गाए थे। हिन्दुओं के साहित्य में जाति विशेषों के उद्गम के संबंधा
में ऐसे अनेक गीत आदि हैं, जिनमें एक जाति को सर्वोच्च और दूसरी को निंदा का पा=
बनाने का प्रयास किया गया है। ऐसे साहित्य का एक घृणित नमूना ‘सह्याद्रिखंड’ है। यह
असामाजिक भावना जाति तक ही सीमित नहीं है। इसकी जड़ें और भी गहरी हैं और इसने
उप-जातियों के आपसी संबंधाों को भी विकृत कर दिया है। मेरे अपने प्रांत में स्वयं ब्राह्मणों
की ही अनेक उप-शाखाएं हैं, जैसे गोलक ब्राह्मण, देवरुख ब्राह्मण, कराड ब्राह्मण, पाल्श
ब्राह्मण और चितपावन ब्राह्मण। लेकिन इनमें परस्पर जो असामाजिकता की भावना है, वह
उतनी ही अधिाक एवं उतनी ही उग्र है, जैसे कि ब्राह्मणों और अन्य गैर-ब्राह्मण जातियों
के बीच में है। लेकिन इसमें कोई विचि=ता नहीं है। जब भी कोई समुदाय अपने स्वार्थ से
प्रेरित हो जाता है तो उसमें असामाजिकता की भावना उत्पन्न हो जाती है। इसके कारण
वह समुदाय अन्य समुदायों से पूरा संवाद और संपर्क करना बंद कर देता है, क्योंकि वह
अपने स्वार्थ की सुरक्षा करना ही अपना उद्देश्य मान बैठता है। यह असामाजिक भावना,
अर्थात् अपने स्वार्थ की रक्षा की भावना ही विभिन्न जातियों के एक-दूसरे से अलग होने
जातिप्रथा-उन्मूलन
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का एक वैसा ही विशिष्ट लक्षण है, जैसा कि अलग-अलग राष्ट्रों का। ब्राह्मणों का मुख्य
उद्देश्य यह है कि गैर-ब्राह्मणों के विरु) अपने स्वार्थ की रक्षा करें और गैर-ब्राह्मणों
का मुख्य उद्देश्य यह है कि ब्राह्मणों के विरु) अपने स्वार्थ की रक्षा करें। इसलिए हिन्दू
समुदाय विभिन्न जातियों का एक संग्रह मा= नहीं है, बल्कि वह श=ुओं का समुदाय है।
उसका हर विरोधाी वर्ग स्वयं अपने लिए और अपने स्वार्थपूर्ण उद्देश्य की पूर्ति के लिए ही
जीवित रहना चाहता है। इस जातिप्रथा का एक और निंदनीय पक्ष भी है। अंग्रेजों के पूर्वजों
ने ‘वार ऑफ़ द रोजेज‘ और ‘क्रॉमवेलियन वार‘ से एक पक्ष की ओर से या दूसरे पक्ष की
ओर से द्धयु) मेंऋ भाग लिया था। लेकिन जिन लोगों ने इनमें से किसी एक के पक्ष में यु)
में भाग लिया, उनके आज के वंशज दूसरे पक्ष की आरे से भाग लेने वालों के वंशजों के
विरु) किसी प्रकार की बदले की भावना नहीं रखते। वे इस आपसी लड़ाई को भूल चुके
हैं। लेकिन आजकल के गैर-ब्राह्मण आजकल के ब्राह्मणों को इसलिए क्षमा नहीं कर पा
रहे हैं, क्योंकि उनके पूर्वजों ने शिवाजी का अपमान किया था। इसी तरह आजकल के
कायस्थ भी आजकल के ब्राह्मणों को इसीलिए माफ़ नहीं कर रहे हैं, क्योंकि ब्राह्मणों के
पूर्वजों के पूर्वजों ने उनके पूर्वजों के पूर्वजों का अपमान किया था। अंग्रेजों और भारतीयों में
ऐसा अंतर क्यों? स्पष्ट है कि यह जातिप्रथा के कारण ही है। विभिन्न जातियों के होने के
कारण और जातिगत चेतना के कारण ही विभिन्न जातियों के आपस के अतीत के विरोधा
भुलाए नहीं जा सके हैं। और इसी कारण जातियों में एकात्मता नहीं आ पाई है।