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अध्याय – 24 – हिंदू धर्म को सुधारने के 5 सुझाव

यद्यपि मैं धार्म के नियमों की निंदा करता हूं, इसका अर्थ यह न लगाया जाए कि धर्म

की आवश्यकता ही नहीं। इसके विपरीत मैं बर्क के कथन के सहमत हूं, जो कहता है:

‘‘सच्चा धार्म समाज की नींव है, जिस पर सब नागरिक सरकारें टिकी हुई हैं।‘‘

परिणामतः जब मैं यह अनुरोधा करता हूं कि जीवन के ऐसे पुराने नियम समाप्त कर

दिए जाएं, जब मैं यह देखने का उत्सुक हूं कि इसका स्थान ‘धार्म के सि)ांत‘ ले लें,

तभी हम दावा कर सकते हैं कि यही सच्चा धार्म है। वास्तव में, मैं इस बात से पूरी तरह

सहमत हूं कि धार्म आवश्यक है। इसलिए मैं आपको कहना चाहता हूं कि धार्म में सुधाार

को मैं एक आवश्यक पहलू मानता हूं। मेरे विचार से धार्म में सुधाार के मूलभूत मुद्दे इस

प्रकार है: द्ध1ऋ हिन्दू धार्म की केवल एक और केवल एक ही मानक पुस्तक होनी चाहिए,

जिसे सारे के सारे हिन्दू स्वीकार करें और मान्यता दें। इससे वस्तुतः मेरा तात्पर्य यह है

कि वेदों, शास्त्रें और पुराणों को पवि= और अधिाकृत ग्रंथ मानने पर रोक लगे तथा इन

ग्रंथों में निहित धाार्मिक या सामाजिक मत का प्रवचन करने पर सजा का प्रावधाान हो,

द्ध2ऋ अच्छा होगा यदि हिन्दुओं में पुरोहिताई समाप्त की जाए। चूंकि ऐसा होना असंभव है,

इसलिए पुरोहिताई पुश्तैनी नहीं होनी चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति जो अपने को हिन्दू मानता है,

उसे राज्य के द्वारा परीक्षा पास कर सनद प्राप्त कर लेने पर पुजारी बनने का अधिकार

होना चाहिए, द्ध3ऋ बिना सनद क े धामा र्न ुष्ठान करन े का े कान ूनन व ैधा नहीं माना जाना

जातिप्रथा-उन्मूलन

90 बाबासाहेब डॉ- अम्बेडकर संपूर्ण वाङ्मय

चाहिए। जिनक े पास सनद नहीं है, उनके द्वारा पुजारी का काम किए जाने पर सजा

का प्रावधाान हो, द्ध4ऋ पुजारी एक सरकारी नौकर होना चाहिए, जिसके ऊपर नैतिकता,

आस्था तथा पूजा के मामलों में अनुशासनात्मक कार्यवाही की जा सके। इसके अलावा

उस पर नागरिक कानून भी लागू होने चाहिएं, और द्ध5ऋ पुजारियों की संख्या को कानून

द्वारा आवश्यकता के अनुरूप सीमित किया जाना चाहिए, जैसा कि आई सी एस के पदों

की संख्या के बारे में किया जाता है। कुछ लोगों के लिए यह सुझाव अति सुधाारवादी लग

सकता है। लेकिन इसे मैं क्रांतिकारी कदम नहीं मानता हूं। भारत में प्रत्येक व्यवसाय का

नियमन किया गया है। जैसे इंजीनियर द्वारा योग्यता दर्शाई जानी चाहिए। डाक्टर द्वारा

योग्यता दर्शाई जानी चाहिए। वकील द्वारा भी योग्यता दशाई जानी चाहिए, इससे पहले

कि वे अपने पेशे को अपनाएं। अपने पेशे के संपूर्ण समय के दौरान वे न केवल नागरिक

और आपराधिाक कानून मानने के लिए बाधय हैं, बल्कि संबंधिात पेशे में नैतिकता की विशेष

आचार-संहिता भी मानने को वे बाधय हैं। केवल पुजारी का ही पेशा ऐसा है, जिसमें

योग्यता दर्शाने की आवश्यकता नहीं है। हिन्दू पुजारी का ही केवल ऐसा पेशा है, जिसके

लिए कोई आचार-संहिता निर्धाारित नहीं है। मानसिक रूप से पुजारी मुर्ख हो सकता है,

शारीरिक रूप से वह किसी खराब बीमारी, जैसे सूजाक या सिफ़लिस से ग्रसित हो सकता

है और नैतिक रूप से वह अधार्मी हो सकता है। इसके बावजूद वह पुण्य अनुष्ठान कर

सकता है, हिन्दू मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश कर सकता है तथा हिन्दू देवताओं की पूजा

कर सकता है। इसके लिए एक ही शर्त है कि वह पुरोहित की जाति में पैदा हुआ हो।

यह सब घृणास्पद है और यह सब इस कारण है कि हिन्दू पुजारी पर न तो कोई काननू

लागू है और न ही कोई नैतिकता की आचार-संहिता। इनके लिए कोई कर्तव्य निर्धाारित

नहीं है। केवल अधिाकार और सुविधााएं इन्हें मिली हुई हैं। यह एक ऐसी बला है, जिसे

देवतागणों ने समाज के मानसिक तथा नैतिक पतन के लिए लाद दिया है। जैसा कि मैंने

उससे पूर्व उल्लेख किया है, पुरोहित वर्ग को विधोयक द्वारा नियं=ण में लिया जाना चाहिए।

इससे लोगों का अनिष्ट करने और उन्हें गुमराह करने पर रोक लगेगी। इसमें पुरोहिताई

प्रजातांत्रिक संस्था बन जाएगी तथा पुरोहित बनने के अवसर सभी के लिए खुल जाएंगे।

इस प्रकार ब्राह्मणवाद को मारने में मदद मिलेगी और जातियों की समाप्ति के लिए भी

मदद मिलेगी, जो ब्राह्मणवाद की ही देन है। ब्राह्मणवाद ऐसा जहर है, जिससे हिन्दूवाद

खराब हुआ है। ब्राह्मणवाद को मारने के बाद ही आप हिन्दूवाद को बचाने में सफ़ल

हो पाएंगे। किसी भी ओर से इन सुधाारों का विरोधा नहीं होना चाहिए। आर्य समाजियों

द्वारा भी इन सुझावों का स्वागत किया जाना चाहिए, क्योंकि ये उनके द्वारा अपनाए गए

सि)ांत ‘गुणकर्म‘ के अनुरूप है।

चाहे आप ऐसा करें या न करें, आपको अपने धार्म को एक नया सै)ांतिक आधाार

देना होगा, जो स्वतं=ता, समानता और भाई-चारे के, संक्षेप में, प्रजातं= के अनुरूप हो। मैं

इस विषय का विशेषज्ञ नहीं हूं। लेकिन मुझे बताया गया है कि ऐसे धाार्मिक सि)ांत जो

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स्वतं=ता, समानता और भाईचारे के अनुरूप हों, उन्हें विदेश से लाने की आवश्यकता नहीं

है, क्योंकि इस प्रकार के सि)ांत उपनिषदों में वर्णित हैं। आप चाहें तो पूरा ढांचा बदले

बिना कच्ची धाातु की यथेष्ट कटाई-छटाई करके यह किया जा सकता है, जो मेरे कथन

से अधिाक है। इसका तात्पर्य है कि जीवन की मूलभूत धाारणाओं को पूरी तरह बदला जाए।

इसका तात्पर्य है कि मनुष्य और चीजों के प्रति दृष्टिकोण तथा रवैये में पूरा बदलाव लाया

जाए। इसका अर्थ है ‘धार्म-परिवर्तन‘ परंतु यदि आप इस शब्द को पसंद नहीं करते तो

मैं कहूंगा इसका अर्थ है – नया जीवन। लेकिन एक नया जीवन मृत शरीर में प्रवेश नहीं

कर सकता। नया जीवन केवल नए शरीर में ही प्रवेश कर सकता है। इससे पहले कि

नया शरीर अस्तित्व में आए और उसमें नया जीवन प्रवेश कर सके, पुराने शरीर को हर

हालत में मरना चाहिए। साधाारण शब्दों में, इससे पहले कि नया जीवन डाला जाए और

उसमें स्पंदन हो, पुराने ढर्रे को समाप्त होना चाहिए। यही मेरे कहने का अर्थ है, जब मैंने

कहा था कि शास्त्रें की सत्ता को हटाओं और शास्त्रें का धार्म नष्ट कर दो।