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अध्याय – 16 – चातुर्वर्ण्यं 21वीं सदी में संभव है कि नहीं ?

मेरे लिए यह चातुर्वर्ण्य जिसमें पुराने नाम जारी रखे गए हैं, घिनौनी वस्तु है, जिससे

मेरा पूरा व्यक्तित्व विद्रोह करता है। लेकिन मैं यह नहीं चाहता कि मैं केवल भावनाओं के

आधाार पर चातुर्वर्ण्य के प्रति आपत्ति प्रकट करूं। इसका विरोधा करने के लिए मेरे पास

अधिक ठोस कारण हैं। इस आदर्श की अच्छी जांच-परख के बाद मुझे पूरा विश्वास हो

गया है कि यह चातुर्वर्ण्य सामाजिक संगठन प्रणाली के रूप में अव्यावहारिक, घातक और

अत्यंत असफ़ल रहा है। व्यावहारिक दृष्टि से भी चातुर्वर्ण्य से ऐसी अनेक कठिनाइयां

उत्पन्न होती हैं, जिन पर इसके समर्थकों ने धयान नहीं दिया। जाति का आधाारभूत सि)ांत

वर्ण के आधारभूत सि)ांत से मूल रूप में भिन्न है, न केवल मूल रूप से भिन्न है, बल्कि

मूल रूप से परस्पर-विरोधाी है। पहला सि)ांत गुण पर आधाारित है। लेकिन अगर कोई

व्यक्ति गुणों के आधाार पर नहीं, बल्कि जन्म के आधाार पर ऊंची हैसियत पा जाए तो आप

उसे कैसे उस जगह से हटने के लिए बाधय करेंगे? आप लोगों को इस बात के लिए कैसे

बाधय करेंगे कि वे उस व्यक्ति को जिसकी भले ही जन्म के आधाार पर हैसियत निम्न

स्तर की रही हो उसे उसके गुण के आधाार पर प्रतिष्ठा प्रदान करें। उसके उद्देश्य से ‘वर्ण

व्यवस्था‘ की स्थापना के लिए पहले जातिप्रथा को समाप्त करना होगा? लेकिन ऐसा कैसे

किया जाए? जन्म के आधाार पर बनी चार हजार जातियों को मा= चार वर्गों में किस

तरह परिवर्तित किया जा सकता है? चातुर्वर्ण्य के समर्थकों को सबसे पहले इस कठिनाई

का समाधाान ढूंढना होगा। साथ ही, यदि चातुर्वर्ण्य के समर्थक चातुर्वर्ण्य की स्थापना की

सफ़लता चाहते हैं तो उन्हें एक अन्य कठिनाई का भी समाधाान ढूंढना होगा।

चातुर्वर्ण्य के सि)ांत में यह पूर्व-कल्पना है कि लोगों को चार निश्चित वर्गों में बांटा

जा सकता है। क्या यह संभव है? इस दृष्टि से चातुर्वर्ण्य प्लेटों के आदर्श की तरह ही

दिखाई देता है – जैसा कि आगे बताया गया है। प्लेटों के अनुसार लोगों को उनकी प्रकृति

के अनुसार तीन भागों में रखा गया था। उसका मानना था कि कुछ लोगों का विशिष्ट

लक्षण है, बहुत भूख लगना, प्लेटो ने उन्हें श्रमिक और काम-धांधाा करने वालों के वर्ग में

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रखा। अन्य लोगों को उसने भूख शांत करने में लगे रहने के साथ-साथ बहादुर प्रवृत्ति

का भी पाया। इन्हें उसने यु) के समय रक्षक वर्ग में और आंतरिक शांति बनाए रखने

वालों के वर्ग में रखा। अन्य लोगों में उसने यह देखा कि उनके पास वस्तुओं और तथ्यों

के आधारभूत सार्वभौम कारण को समझने की क्षमता थी। ऐसे लोगों को उसने शेष लोगों

के लिए कानून बनाने वालों के वर्ग में रखा। लेकिन प्लेटों के उक्त गणराज्य द्धरिपब्लिकऋ

की जिस बात के लिए आलोचना की जाती है, वहीं आलोचना चातुर्वर्ण्य की व्यवस्था के

संबंध में भी की जा सकती है, क्योंकि इसका आधाार यह संभावना है कि सभी लोगों को

बिल्कुल सही ढंग से चार अलग-अलग वर्ग में रखा जा सकता है। प्लेटो के विरु) सबसे

बड़ी आलोचना यह थी कि उसका सभी लोगों को तीन बिल्कुल अलग-अलग विशिष्ट

वर्गों में निर्जीव व्यक्तियों की तरह डाल देना, मनुष्य और उसकी शक्तियों के प्रति बहुत

ही सतही दृष्टिकोण प्रदर्शित करता है। प्लेटों को इस बात का सम्यक् ज्ञान नहीं था कि

प्रत्येक व्यक्ति की अपनी विशिष्टता होती है, वह शत-प्रतिशत औरों की तरह नहीं होता,

और प्रत्येक व्यक्ति का अपना वर्ग अलग ही होता है। वह इस तथ्य को पहचान नहीं

पाया कि एक ही व्यक्ति की सक्रिय प्रवृत्तियों में अनंत विविधाता हो सकती है, या उसमें

प्रवृत्तियों के असंख्य योग हो सकते हैं। उसके विचार से व्यक्ति के गठन में कई प्रकार

की क्षमताएं या शक्तियां होती हैं। उसके कथन की असत्यता स्पष्ट रूप से दृष्टिगत होती

है। आधाुनिक विज्ञान से यह सि) हो गया है कि व्यक्तियों को कुछेक विशिष्ट वर्गों में

निर्जीवों की तरह विभाजित कर देना, उनके प्रति बहुत ही सतही दृष्टिकोण को प्रदर्शित

करना है – वस्तुतः यह विचार इस योग्य ही नहीं है कि इस पर विशेष धयान दिया जाए।

इस कारण अगर हमें व्यक्तियों के गुणों का उपयोग करना है, तो उनका वर्गों में विभाजन

पूर्णतः असंगत होगा, क्योंकि व्यक्तियों के गुण या विशेषताएं अति विविधा प्रकार की होती

हैं। इसलिए जिस कारण से प्लेटो के गणराज्य की कल्पना असफ़ल सि) हुई, उसी

कारण चातुर्वर्ण्य भी असफ़ल होगा, अर्थात व्यक्तियों को एक वर्ग या दूसरे वर्ग का मानकर

उन्हें अलग-अलग खानों में बांटना संभव नहीं है। लोगों को बिल्कुल सही तौर पर चार

निश्चित वर्गों में बांटना इसलिए भी असंभव है कि यह सि) है कि पहले जो चार वर्ग थे,

वे अब स्वयं चार हजार जातियों में बंट गए हैं।

चातुर्वर्ण्य की स्थापना के मार्ग में एक तीसरी कठिनाई भी है। अगर चातुर्वर्ण्य व्यवस्था

स्थापित हो भी जाए तो उसे किस तरह बनाए रखा जाएगा? चातुर्वर्ण्य की सफ़लता की

एक महत्वपूर्ण आवश्यकता यह है कि एक दंड प)ति भी रहे, जो दंड-विधाान के जरिए इस

व्यवस्था को जारी रखे। चातुर्वर्ण्य को तोड़ने वालों से निपटने की समस्या इसमें लगातार

आती रहेगी। अगर इस व्यवस्था को तोड़ने पर दंड का विधाान न हो तो लोगों को उनके

अपने-अपने वर्ग में बांधो रखना संभव नहीं होगा। पूरी प)ति छिन्न-भिन्न हो जाएगी,

क्योंकि यह वर्गीकरण मानव प्रकृति के अनुकूल नहीं है। चातुर्वर्ण्य अपनी अंतर्निहित अच्छाई

के आधाार पर ही बना नहीं रह सकता। इसे कानून द्वारा ही लागू कराना होगा। दांडिक

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अनुशास्ति के बिना चातुर्वर्ण्य के विचार को चरितार्थ नहीं किया जा सकता। इसका प्रमाण

‘रामायण‘ की कथा में मिलता है, जिसमें राम ने शम्बूक का वधा किया था। कुछ लोग राम

को दोषी मानते हैं कि उन्होंने खिलवाड़स्वरूप या किसी कारण के बिना शम्बूक का वधा

किया था। परंतु यदि राम पर शम्बूक की हत्या करने का दोष लगाया जाता है, तो संपूर्ण

स्थिति को गलत समझना होगा। रामराज चातुर्वर्ण्य पर आधाारित राज था। राजा के रूप

में राम चातुर्वर्ण्य को अक्षुण्ण रखने के लिए बाधय थे, अतः शम्बूक की हत्या करना उनका

कर्तव्य था, क्योंकि शम्बूक शुद्र था और उसने अपने वर्ग का अतिक्रमण किया था तथा वह

ब्राह्मण बनना चाहता था। यही कारण है कि राम ने शम्बूक को मार डाला। लेकिन इससे

यह प्रकट होता है कि चातुर्वण्य को बनाए रखने के लिए दांडिक अनुशास्ति आवश्यक है।

इसके लिए न केवल दांडिक अनुशास्ति, बल्कि मृत्यु-दंड भी आवश्यक है। यही कारण

है, राम ने शम्बूक को मृत्यु-दंड से कम दंड नहीं दिया। यही कारण है कि ‘मनुस्मृति‘ में

इतना भारी दंडादेश विहित किया गया है कि यदि कोई शूद्र वेद पाठ करता है या वेद

पाठ सुन लेता है तो उसकी जिहवा काट ली जाए या उसके कानों में पिघला हुआ सीसा

डाल दिया जाए। चातुर्वण्य के समर्थकों को यह आश्वासन देना होगा कि वे मनुष्यों का

वास्तविक वर्गीकरण करेंगे और बीसवीं शताब्दी के आधाुनिक समाज को इस बात के लिए

प्रेरित करेंगे कि वह ‘मनुस्मृति‘ की दांडिक अनुशास्तियों में संशोधान करे।

ऐसा प्रतीत होता है कि चातुर्वर्ण्य के समर्थकों ने यह नहीं सोचा है कि उनकी इस

वर्ग- व्यवस्था में सि्=यों का क्या होगा? क्या उन्हें भी ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र –

चार वर्गों में विभाजित किया जाएगा, या उन्हें अपने पतियों का दर्जा प्राप्त कर लेने दिया

जाएगा? यदि स्=ी का दर्जा शादी के बाद बदल जाएगा तो चातुर्वर्ण्य के सि)ांत का क्या

होगा, अर्थात् क्या किसी व्यक्ति का दर्जा उसके गुण पर आधाारित होना चाहिए? यदि

उनका वर्गीकरण उनके गुण के आधाार पर किया जाता है, तो क्या उनका ऐसा वर्गीकरण

नाममा= का होगा या वास्तविक। यदि वह नाममा= का है, तो बेकार है। इस स्थिति में

तो चातुर्वर्ण्य के समर्थकों को यह स्वीकार करना होगा कि उनकी वर्ण-व्यवस्था सि्=यों

पर लागू नहीं होती। यदि यह वास्तविक है, तो क्या चातुर्वर्ण्य के समर्थक सि्=यों पर इस

व्यवस्था में लागू करने के तर्कसंगत परिणामों का अनुसरण करने के लिए तैयार हैं? उन्हें

महिला पुरोहित तथा महिला सैनिक रखने के लिए तैयार रहना होगा। हिन्दू समाज महिला

शिक्षकों तथा महिला बैरिस्टरों का अभ्यस्त हो गया है। वह महिला किण्वकों और महिला

कसाइयों के लिए भी अभ्यस्त हो सकता है। लेकिन वह एक बहादुर आदमी होगा, जो

यह कहेगा कि हिन्दू समाज महिला पुरोहितों और महिला सैनिकों के लिए अनुमति देगा।

लेकिन यह सि्=यों पर चातुर्वर्ण्य लागू करने का तर्कसंगत परिणाम होगा। इन कठिनाइयों

के बावजूद मेरा विचार है कि एक जन्मजात मूर्ख को छोड़कर कोई भी व्यक्ति यह आशा

और विश्वास नहीं कर सकता कि चातुर्वर्ण्य का फि़र से सफ़ल उद्भव होगा।

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