Skip to content
Home » अध्याय – 1 – रानाडे, गांधी और जिन्ना

अध्याय – 1 – रानाडे, गांधी और जिन्ना

मैं आपको यह बता दूं कि इस नियंत्रण से मैं बहुत प्रसन्न नहीं हूं। मुझे यह आशंका  है कि हो सकता है कि मैं इस अवसर के साथ न्याय न कर सकूं। एक वर्ष पहले जब बंबई में रानाडे की जन्मशती मनाई गई थी तो माननीय श्रीनिवास शास्त्री को बोलने के लिए निमंत्रित किया गया था। अनेक कारणों से वह उस कार्य के लिए सुयोग्य व्यक्ति थे। अपने जीवन के कुछ भाग के लिए वह रानाडे के समकालीन होने का दावा कर सकते हैं। उन्होंने रानाडे को बहुत नजदीक से देखा था और वह रानाडे के इस कार्य के प्रत्यक्ष साक्षी थे, जिसके लिए उन्होंने अपना जीवन समर्पित कर दिया था। उन्हें उनका मूल्यांकन करने तथा उनकी उनके सहकर्मियों के साथ तुलना करने का अवसर मिला था। अतएव वह रानाडे के संबंध में अपने विचार विश्वास के साथ प्रतिपादित कर सकते थे और उनको अपने वैयक्तिक संपर्क के कारण आत्मीयता के साथ व्यक्त कर सकते थे। वह रानाडे के जीवन की झांकी व किस्से बताकर श्रोताओं के समक्ष उनके जीवन-चरित्र पर प्रकाश डाल सकते थे। परंतु मेरे पास इनमें से कोई भी योग्यता नहीं है। रानाडे के साथ मेरा संबंध बहुत ही कम रहा है, यहां तक कि मैंने उनको देखा भी नहीं था। रानाडे के संबंध में केवल दो घटनाओं की मुझे याद है। पहली घटना का संबंध उनके निधन से है। मैं सतारा हाईस्कूल में पहली कक्षा का विद्यार्थी था। 16 जनवरी, 1901 को हाईस्कूल बंद कर दिया गया था और उस दिन हम लड़कों ने छुट्टी मनाई थी। हमने जब यह पूछा कि स्कूल बंद क्यों कर दिया गया तो हमें यह बताया गया कि रानाडे की मृत्यु हो गई है। उस समय मेरी आयु लगभग 9 वर्ष की थी। मैं रानाडे के विषय में कुछ नहीं जानता था कि वह कौन थे, उन्होंने क्या किया था। अन्य लड़कों की भांति मैं भी छुट्टी होने पर प्रसन्न था और इस बात को जानने की कोई चिंता व परवाह नहीं थी कि कौन मर गया है। एक और घटना जो मुझे रानाडे की याद दिलाती है, वह पहली घटना के बहुत बाद की है। एक बार मैं अपने पिता जी के पुराने कागजों के कुछ बंडलों को देख रहा था। उस समय उनमें मुझे एक ऐसा कागज मिला, जिससे यह आभास मिला कि वह ‘महार जाति‘ के कमीशंड तथा नॉन कमीशंड अधिकारियों द्वारा भारत सरकार को 1892 में जारी किए गए उन आदेशों के विरुद्ध भेजी गई एक याचिका थी, जिन आदेशों में सरकार ने सेवा में महारों की भर्ती पर रोक लगाई थी। पूछताछ करने पर मुझे यह बताया गया कि यह हरजाना प्राप्त करने के लिए याचिका की एक प्रतिलिपि है। इसे रानाडे ने पीड़ित महारों की सहायता के लिए लिखा था। इन दो घटनाओं के अलावा मुझे रानाडे के विषय में कोई बात याद नहीं है। उनके संबंध में व्यक्तिगत रूप से मैं कुछ नहीं जानता। यह केवल वह जानकारी है, जो मुझे उनके काम के विषय में पुस्तक पढ़कर तथा उनके विषय में दूसरे लोगों के कथनों से मिली है। आपको मुझसे यह अपेक्षा नहीं करनी चाहिए कि मैं व्यक्तिगत अनुभव की कोई ऐसी बात कहूं, जिसमें या तो आपकी रुचि हो या आपको उससे शिक्षा मिले। एक सुप्रसिद्ध व्यक्ति के रूप में उनके विषय में मेरे क्या विचार हैं और उनका आज भारतीय राजनीति में क्या स्थान है, मैं वही आपको बताना चाहता हूं।